जानिए इस राजस्थान दिवस पर 5 राजस्थानी शान के बारे में !

“राणाओं के पराक्रम, राजाओं की जबान, लोगों के हित में लगा दी थी जिन्होंने अपनी जान वही हैं राजस्थान की शान।”

यह केवल इतिहास नहीं है जिसे हम किताबों में पढ़ते हैं कि उन महान कर्मों के कारन ही राजस्थान की धरती सोना है और आसामान चांदी। आज भी राजस्थान में ऐसे लोग हैं जिनके कर्म लोगों की ज़िंदगियाँ ही नहीं बल्कि प्रकृति को भी बचा रहे हैं और राजस्थान का नाम रौशन कर रहे हैं।

जानिए वर्तमान में राजस्थान  की शान बनाए रखने वाले  5 लोगों के बारे में !

1-सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल-

एक ऐसा देश जहां हर दिन करीब 2000 भ्रूण हत्याएं होती हैं और न जाने कितने ही पेड़ काट दिए जाते हैं। ऐसे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान के पिपलांत्री गांव के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उन्होंने एक गांव में ही सही लेकिन अनेकों कन्याओं को इस दुनिया में जन्म लेने दिया और उनके आने की ख़ुशी में 111 पेड़ भी लगवाना शुरू किया। इनकी प्रेरक कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk ।

2- नितेश यादव-

आसानी से मिली चीज़ें किसे स्वीकार नहीं होतीं और रास्ता कठिन हो तो बहाने बनाकर कौन नहीं भागना चाहता।  यह बात नितेश पर बिलकुल भी लागू नहीं होती। अलवर, राजस्थान के 15 वर्षीय नितेश के पास उनके छोटे से गांव में कोई भी संसाधन नहीं थे। जब पहली बार उन्होनें 13 वर्ष की आयु में अपने पिता से स्मार्टफोन मांगा और फिर भिन्न साइट्स के जरिये कोडिंग सीखकर एक ऐप बनाई। उनकी ऐप लोगों ने खूब इस्तेमाल करी। यह देखकर उन्होंने सोचा कि क्यों न वो अपने गांव के किसानों को भी ऐसी ही ऐप के जरिये उनकी दिक्कतें दूर करें। इनकी प्रेरक कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk ।

3- ताज मोहम्मद रंगरेज़ –

ताज मोहम्मद सोनी चैनल पर आने वाले रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सातवें संस्करण के पहले करोड़पति विजेता हैं। उदयपुर के इतिहास के शिक्षक ताज ने शो के पहले करोड़पति बनकर स्वयं ही एक इतिहास बनाया। खुद पर आत्मविश्वास रखने वाले ताज विजयी राशि से अपनी दृष्टिहीन बच्ची का इलाज़ करना चाहते हैं और अशिक्षित बच्चियों को शिक्षा देना चाहते हैं। इनकी प्रेरक कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk ।

4- दुर्रिया कपासी –

दुर्रिया कपासी एक 28 वर्षीय लेखिका, रचनात्मक लेखन की शिक्षिका, एक कुक और प्रेरक वक्ता हैं। अफ्रीकन देश के तंज़ानिया में पली-बड़ी दुर्रिया के पूर्वज गुजरात के रहने वाले हैं। दुर्रिया एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को हराया और आज अपने लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। Once Upon a Genie की लेखिका ने अपनी ज़िन्दगी के सफर को अपने शब्दों में उतार कर अपने बचपन का लेखक बनने का सपना पूरा किया। कैंसर की तुलना में सबसे अधिक मजबूत कुछ है तो वो स्वयं की इच्छा है जो बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी हरा सकती है। इस बात को सत्य साबित करती दुर्रिया कपासी की कहानी सुनने के लिए देखें यह जोश Talk।

5- परेश गुप्ता –

परेश गुप्ता ग्लोबल सेंटर फॉर एन्त्रेप्रेंयूर्शिप एंड कॉमर्स के संस्थापक एवं सी.ई.ओ, राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित युवा गतिविधियों के ब्रांड एम्बेसडर और बहुत से स्टार्ट-अप के सलाहकार हैं। इन्होंने अपनी बात-चीत के दौरान बताया कि कैसे एक साधारण ज़िन्दगी व्यतीत करने वाले आदमी ने सारी मुश्किलों से लड़ कर आज खुद को एक सफल मुकाम पर पंहुचा दिया है। चार्टड अकाउंटेंट, वित्तीय मॉडलर, सफल उद्यमी जो कि 3 बार राष्टीय अवार्ड विजयी कंपनी शार्प एज लर्निंग के संस्थापक भी हैं। इनका प्रेरणाजनक सफर जानने के लिए देखें यह जोश Talk।

“तुम चाहो तो कुछ भी कर सकते हो।”- लोकेश भील

मुश्किलें या कठिनाइयां आपको रोकने नहीं आती बल्कि आपको रास्ता दिखाने आती हैं, आपकी असल क्षमता से मिलवाने आती हैं। लोकेश ने अपने जीवन में कठिनाइयां, मुश्किलें, परेशानियां देखीं तो नहीं क्योंकि वे देख ही नहीं सकते थे। लेकिन उनका कहना है कि उनके जीवन की इस चुनौती में जहाँ वे अपनी आँखों से देख ही नहीं सकते थे, इसी मुश्किल ने उन्हें रास्ता दिखाया और आज वे एक अच्छा और सरल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
ब्रेल लिपि के माध्यम से पढाई कर रहे लोकेश कोई साधारण छात्र नहीं हैं। लोकेश ने अपने पसंदीदा विषय हिंदी में 100 में से 100 अंक प्राप्त किए और साथ ही वे अपने गांव के आस-पास के बच्चों को भी पढ़ाते हैं। यही तो एक सार्थक जीवन है जहाँ वे खुद अपने लिए और दूसरों का भी अच्छा कर रहे हैं। लोकेश की उत्साहवर्धक और हौसला बढ़ा देनी वाली संपूर्ण कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk।

लोकेश के जीवन की एक झलक-

गुढा गांव के रहने वाले लोकेश भील एक ऐसे समुदाय में जन्में जो की आदिवासी क्षेत्र में आता है। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ के 90 प्रतिशत लोगों को हिंदी ही नहीं आती। लोकेश के परिवार में उनका जन्म होने के बाद लोग बहुत खुश थे, लड़का हुआ है, पढ़ेगा- लिखेगा। पर ज़रूरी तो नहीं हर ख़ुशी यूहीं रहे और 3 साल की उम्र में आँखों में कोई इन्फेक्शन होने की वजह से लोकेश की आँखों की रौशनी चली गई। उनकी माँ ने बहुत कोशिशें की बड़े-बड़े डॉक्टर्स को दिखाया पर कुछ ना हुआ। इस कारणवश उनकी पढाई-लिखाई सब छूट गई लेकिन वे फिर भी स्कूल जाया करते थे और सिर्फ सुनकर पढ़ा करते थे। अब वो कहते हैं ना की जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो कहीं ना कहीं से उम्मीद की एक किरण तो ज़रूर आती है और लोकेश की ज़िन्दगी में एक अध्यापिका ऐसी किरण बनकर आई। उन्होंने लोकेश को और उसके परिवार को ब्रेल लिपि के बारे में बताया जिससे दृष्टिहीन भी पढ़ लिख सकते हैं। फिर क्या था 8 वर्ष की आयु से लोकेश ने पढाई करना शुरू करी और आज का दिन है जब उन्हें हिंदी विषय में 100 में से 100 अंक प्राप्त हो चुके हैं। इसके अलावा वे लोगों के बीच ये जागरूकता भी फैला रहें हैं कि कैसे दृष्टिहीन भी पढ़-लिख सकते हैं और वे खुद भी बच्चों को हिंदी में शिक्षित करते हैं।

चुनौतियाँ आपको काबिल बनती हैं- 

लोकेश का कहना है कि उनके जीवन में बहुत सी चुनौतियाँ थीं। लोगों की बातें सुनना, खुद अपना काम ना कर पाना, अच्छे से पढ़-लिख ना पाना और भी बहुत सी चीज़ें लेकिन उन्होंने कभी-भी उन चुनौतियों के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डट कर सामना किया और आज वे अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
ठीक इसी तरह हमारे जीवन में आई परेशानियों को हमें खुद से बड़ा नहीं समझना चाहिए। हमारा मनोबल मजबूत हो तो कोई भी चुनौती कुछ नहीं होती।

“जो कुछ मैंने सहा मैं बाकी लड़कियों को नहीं सहने दूंगी।”- भारती सिंह चौहान

जयपुर की रहने वाली भारती सिंह चौहान प्रवीणलता संस्थान की संस्थापक और अध्यक्ष हैं।
अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी उन्होंने देखा वो नहीं चाहती थी की बाकी की लड़कियां वो सब कुछ सहें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए वो एक सामाजिक कार्यकर्ता बनीं और प्रवीणलता नाम की संस्था खोली जो की लड़कियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा का ध्यान रखती है।
भारती को उनके समुदाय में भभसा के नाम से भी जाना जाता है। एक पेशेवर और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने समाज के प्रति उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। वह भारत से इंटरनेशनल गर्ल राइजिंग कैम्पेन में प्रतिनिधि हैं, जो कि माइकल ओबामा द्वारा शुरू की गई थी जो की राजस्थान में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देती है। हाल ही में उन्हें भारत के राष्ट्रपति और महिला एवं बाल कल्याण विभाग मंत्रालय द्वारा भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तीकरण श्रेणी के तहत शीर्ष 100 महिला अचीवर्स के रूप में सम्मानित किया गया है। इनका प्रेरणादायक सफर जानने के लिए देखें यह जोश Talks ।

भारती का संघर्षमई जीवन जिससे वे बनी एक सशक्त महिला –

बचपन में बैंगलोर में ऐशोआराम की ज़िन्दगी जीने वाली भारती की ज़िन्दगी में तूफ़ान तब आया जब उनके पापा का बिज़नेस बैठ गया। जीवन में इसके अलावा उन्होंने बहुत सी मुश्किलें देखीं बिना लाइट के घर में रहना, पापा की तबियत ख़राब हो जाना, और कमाने वाली सिर्फ भारती थी। उन्होंने अपनी पढाई बच्चों को टुएशन देकर पूरी करी। रात दिन इधर- उधर जाके नौकरी करना क्योंकि पैसे उन्हें ही कमाने थे, साथ में पढाई भी करना और आस-पास के लोगों की बातें भी सुनना, यहाँ तक की एक लड़की थी तो छेड़खानी भी भुक्ति। पर ये सब होने के बाद भारती ने निर्णय लिया कि वे लड़कियों के स्वास्थ्य, उनकी सुरक्षा और शिक्षा का ध्यान रखेंगी। अपने पति के साथ मिलकर आज वे यही कर रही हैं और बहुत से अवार्ड्स भी जीत चुकी हैं।

क्या करती है प्रवीणलता संस्था ?

जाग्रति मिशन जिसमें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटियों की सुरक्षा करना ही प्रवीणलता संस्था का एक मात्र काम है। अब तक भारती अपनी इस संस्था के माध्यम से 19000 लड़कियों की ज़िन्दगी बदल चुकी हैं। यह संस्था लड़कियों को अपनी वर्कशॉप्स द्वारा सिखाती है और सशक्त बनाती है। नुक्कड़ नाटक, रैलीज, रोडशोज़ के द्वारा समाज को जागरूक भी कराती है। समाज और लड़कियों के हित में काम कर रहीं भारती अपना जीवन इन्हीं के नाम कर चुकी हैं।

कैसे बना छोटे-शहर का लड़का बॉलीवुड संगीतकार ?

संगीत निर्देशक और गोरखपुर के रहने वाले विपिन पटवा जो की अब गायन के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारतीय शास्त्रीय गायन में प्रशिक्षित विपिन आने वाली फिल्म “लाली की शादी में लडडू दीवाना” में अपना तीसरा गाना “एक विलन” के प्रसिद्ध गायक मोहम्मद इरफान के साथ गा रहे हैं। इसके पहले वे अरिजीत सिंह के साथ भी गाने गा चुके हैं। गोरखपुर जैसे छोटे शहर से आए और आज एक उभरते हुए संगीतकारों में से एक हैं। इनकी प्रेरक कहानी जानने के लिए देखें यह जोश टॉक।

कैसे एक छोटे शहर के होने के बावजूद भी बनें बॉलीवुड संगीतकार?

शहर छोटा हुआ तो क्या हुआ उसकी आँखों के सपने बड़े थे और पूरी करने की चाह भी जबरजस्त थी।आज विपिन पटवा एक संगीत निर्देशक और बॉलीवुड के उभरते हुए संगीतकारों में से एक हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्में विपिन एक बिज़नेस फैमिली से हैं। उन्होंने 14 वर्ष की आयु में ही निश्चित कर लिया था कि वे संगीत में ही अपना करियर बनाएंगे। उन्होंने सुबह शाम रियाज़ किया और किराना घराना के पंडित हरीश तिवारी से संगीत सीखा। यहाँ तक की उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और एम.फिल भी भारतीय शास्त्रीय संगीत से ही पूरी करी। 2009 में मुंबई अपने सपने लेके पहुंचे विपिन आज की तारिख में लव यू सोनिया, बॉलीवुड डायरीज, वाह ताज जैसी बहुत सी फिल्म के संगीतकार रह चुके हैं। विपिन ने बस सपने देखे और उन्हें पूरा करने में अपना जी-जान लगा दिया और आज वो अपने सपने के बेहद करीब हैं। आप कहाँ से हैं यह मायने नहीं रखता बल्कि आपकी चाह मायने रखती है।

क्यों है निरंतर रियाज़ आवश्यक ?

अपनी टॉक के दौरान विपिन बताते हैं कि छोटी उम्र से ही वे अपने संगीत की कला को निखारने के लिए निरंतर अभ्यास करते आ रहे हैं। जैसे एक निशानेबाज़ अपना निशाना अचूक बनाने के लिए लगातार अभ्यास करता है ठीक उसी प्रकार अपने सुर एक दम सही लगाने के लिए रियाज़ बहुत ही महत्त्वपूर्ण चीज़ है। कोई भी कला तभी निखरती है जब आप उसकी पॉलिशिंग करते हैं इसलिए उन्होंने बताया कि अगर आपको लगे नहीं हो रहा है तो बस बिना ज़्यादा सोचे समझे बस अभ्यास करते रहो एक दिन वो चीज़ सही ज़रूर होगी।

कचरा बीनने से विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर बनने तक, विक्की रॉय का सफर

कभी प्लास्टिक की थैली मिलती थी, कभी टीन के डब्बे, फिर खाली प्लास्टिक बोतल से अच्छी कमाई हो जाती थी, कचरे बीनने से लोगों के जूठन धोने का उसका प्रमोशन, कमाई तो अच्छी करा देता था और उसमें ही उसकी खुशियां दौड़ जाती थी, पर उसकी ज़िन्दगी की सोच कंधे पर रखे उस बोरे तक सिमित नहीं थी। लोग सोते थे तो सपने आते थे पर उसकी आंखों के सपने उसे सोने ही नहीं देते थे। और ऐसी ही फैली पड़ी कतरने बीन कर विक्की के सपनों का सफर शुरू हुआ जो आज विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर हैं। इनकी प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह जोश टॉक।

यह कहानी है विक्की रॉय की। बचपन में खुद को अपनी परस्थितियों से आज़ाद करने के लिए, जेब में 1100 रूपए के साथ विक्की दिल्ली आ पहुंचा। लाखों की भीड़ में तेज़ भागते लोगों के बीच, शहर से अनजान एक मासूम, अचानक घबरा गया पर वो अकेला नहीं था, उस भीड़ में मिले उसे कुछ और बच्चे जिन्होंने उसे सलाम बालक ट्रस्ट भेजा।

सलाम बालक में रहने वाले बच्चों की ज़िन्दगी भी ताले में बंद थी इसलिए रॉय वहां से वापिस स्टेशन आ पहुंचा। कचरा बिन कर और जूठन धोकर कमाई करने से निराश हो रहा रॉय एक दिन सलाम बालक के स्वयं सेवक से मिला और फिर “अपना बालक” , सलाम बालक की ही एक ब्रांच में पढ़ाई के लिए चला गया। पढ़ाई से मुंह मोड़ कर रॉय ने ज़िन्दगी को “लेंस”  से देखने का फैसला किया और सलाम बालक पर डाक्यूमेंट्री शूट कर रहे डिक्सी बेंजामिन से फोटोग्राफी की abc सीखी।

“फोटोग्राफी खुद में ही एक भाषा है उसके लिए इंग्लिश, फ्रेंच या जर्मन आने की ज़रूरत नहीं है ” बेंजामिन के इन शब्दों ने रॉय में उसके सपनों को जीने का उत्साह भर दिया। 18 साल की उम्र में सलाम बालक से बिदाई लेकर रॉय ने अनय मान दिल्ली के फोटोग्राफर के साथ तीन साल काम किया और फिर उसके सपनों का सफर शुरू हुआ , अपने बॉस के साथ फॉरेन ट्रिप्स पर जाना, 5 -स्टार होटल में रुकना।अंजाने में ही सही लेकिन रॉय ने वो सब हासिल किया जो यह कहने पर मजबूर कर दे कि कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता।

रॉय के अचीवमेंट्स में  Photo Exhibition (स्ट्रीट- ड्रीम्स ), वर्ल्ड वाइड कम्पटीशन 2008  के  विजेता बनकर ICP में फोटोग्राफी की पढाई , WTC का शूट, ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग अवार्ड से नवाज़ा जाना, प्रिंस एडवर्ड के साथ बकिंघॅम पैलेस में लंच, “होम स्ट्रीट होम” उनकी पहली  फोटोग्राफी बुक शामिल हैं।

रॉय ने अपने दोस्त के साथ मिलकर 2011 में एक फोटो लाइब्रेरी खोली जहां फोटोग्राफी बुक्स फ्री में उपलब्ध करवाई जाती है।

ज़मीन से जुड़े, अपने कल के एहसास को ज़िंदा रखे हुए, आंखों में ना रुकने वाले वो सपने, हालातों को अपने सामने झुका कर, परिश्रम नाम की उस चाबी से उसने अपनी किस्मत के दरवाज़े खोले और आज एक 27 साल के  विक्की रॉय  विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर का खिताब अपने नाम कर चुके हैं।

समाज में HIV/AIDS की जागरूकता फैला रही है यह १४ वर्षीय नंदिनी कुच्छल !

14 साल की लड़की नंदिनी कुच्छल जिसने समाज की एक विकट समस्या का समाधान करने का निर्णय लिया। वह समस्या जिसे हम HIV और AIDS के नाम से जानते हैं। इन दो बीमारियों का नाम सुनते ही आपके दिमाग में यही आता है कि HIV पीड़ित को स्पर्श कर लिया, या फिर उनका झूठा खा लिया तो यह बीमारी आपको भी लग जाएगी। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होता, HIV एक आनुवंशिक बीमारी है नाकि कोई छुआछूत की बीमारी। इस बात को हमारे समाज के बड़े-बड़े नहीं समझते लेकिन इस 14 वर्ष की लड़की ने समझा और इस सोच को बदलकर HIV पीड़ितों को आम जीवन प्रदान करने के लिए फाइट रेड नाम का मिशन भी शुरू कर दिया। यह संस्था HIV पीड़ितों की देख-रेख करता है, उन्हें शिक्षा दिलाता है और कोशिश करता है कि वो एक आम जीवन बिता सकें बिलकुल आपके और हमारी तरह।

इस युवा लड़की की प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह जोश टॉक ।

 

“रेज़- आशा की एक किरन” नाम का NGO जो की जयपुर के HIV और एड्स पीड़ितों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। इस NGO की एक संस्थापक नंदिनी की दादी रश्मि कुच्छल भी हैं। 8 वर्ष की आयु से ही नंदिनी ने HIV/AIDS के बच्चों को बहुत नजदीक से देखा है और वे उनके लिए कुछ करना चाहती थीं।

अपनी दादी के नक्शेकदम पर चलते हुए, 14 वर्ष की नंदिनी ने अपना ही एक मिशन शुरू किया HIV और AIDS पीड़ितों के लिए जिसका नाम FIGHT RED है।

HIV/AIDS के प्रति समाज की रूढ़िवादी सोच और उन पीड़ितों के साथ किए गए भेदभाव के खिलाफ इस युवा ने यह अभियान शुरू किया। नंदिनी ने फाइट रेड की शुरुवात लोगों से पैसे इक्कठे करके करी, उन्होंने पीड़ितों के लिए 3 लाख से भी ज़्यादा रूपए जुटाए।  हाल ही में, प्रतिष्ठित अशोका फाउंडेशन द्वारा नंदिनी को राजस्थान की पहली युवा वेंचरर के शीर्षक से सम्मानित किया गया।

फाइट रेड ने अब तक बहुत से स्कूलों में  वर्कशॉप्स करवाई हैं और एक वर्कशॉप ट्रक ड्राइवर्स के साथ भी करी है क्योंकी इनके मध्य यह बीमारी सबसे अधिक होने का डर होता है। नंदिनी एक राष्ट्रीय स्तर की स्क्वैश खिलाड़ी हैं और बाकी बच्चों की तरह वे भी सोशल मीडिया को समय देती हैं लेकिन उनका कहना है कि –“प्रत्येक युवा को HIV/AIDS से संभंधित जागरूकता समाज में फैलानी चाहिए”

पति के तेज़ाब डालने से सिर्फ मेरा चेहरा झुलसा था मेरी हिम्मत नहीं

मेरे पति ने मेरे चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया और फिर भी समाज के लिए वो मेरा परमेश्वर ही था, ऐसे लोग ना सिर्फ समाज के लिए बोझ होते हैं बल्कि आने वाली पूरी नस्ल के लिए भी। एक औरत का असतित्व ना तो सिर्फ उसके चेहरे से होता है और ना महज़ उसके पति से।

अपने अतीत के अनुभवों को कुछ यूंही समाज के मुंह पर तमाचा मारने के लहज़े से बताती हैं लखनऊ के सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी मीना सोनी। मीना पर वर्ष 2004 में उनके पति ने तेज़ाब फेंक दिया था। इस घटना के बाद किसी ने सहारा नहीं दिया, लेकिन मीना ने अपनी लड़ाई लड़ी और ना सिर्फ अपने बच्चों का पालन पोषण किया बल्कि खुद जैसी कई और महिलाओं के लिए एक मिसाल और सहारा बनी।

मीना पिछले 7 सालों से लखनऊ की सेंट्रल जेल में उन महिलाओं के साथ काम कर रही हैं जिनको इस तथाकथित समाज से तिरस्कार के अलावा और कुछ नहीं मिलता। मीना के प्रयास से अब तक 27 से ज़्यादा महिलाओं को जेल से रिहा करवाया गया और उनके पुनर्वास का ज़िम्मा उठाया गया है ।

इस जोश टॉक में मीना बताती हैं कि कैसे उन्हें खुद के साथ हुई घटना के बाद हिम्मत मिली और उन्होंने खुद की एक अलग पहचान बनाई। वो ये भी बताती हैं कि क्यों वो अपना चेहरा किसी से नहीं छिपाती हैं।

बचपन से ही अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी बालिका-वधु की सुगना!

बालिका वधु जैसे प्रसिद्ध टीवी सीरियल में सुगना का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री का असल नाम विभा आनंद है। देहरादून के एक छोटे से गांव की विभा के सपने हमेशा से बहुत बड़े थे। भले ही गांव में रहते समय वे तेल लगे बालों में 2 चोटियां बना कर रहती थी, ज़्यादा खूबसूरत नहीं दिखती थीं लेकिन उन्हें इस बात का आभास हमेशा से था की वो एक अभिनेत्री ही बनेंगी। हालांकि मुंबई जैसा शहर और टीवी की ये दूर से रंगीन दिखने वाली दुनिया परदे के पीछे ऐसी नहीं होती। कढ़ी मेहनत, लगन और दृढ निश्चय ही आपको यहाँ आपकी पहचान दिलाता है। विभा ने भी मुंबई में खूब संघर्ष किया और आज वे बालिका वधु, कैसी ये यारियां और महाभारत जैसे कई प्रसिद्ध टीवी शो में काम कर चुकी हैं।

इनकी प्रेरणादायक कहानी इन्हीं की ज़ुबानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

विभा आनंद देहरादून के एक छोटे से गांव में जन्मीं और वहीं उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण करी। खुद को एक अभिनेत्री की तरह देखने वाली विभा अपने पिता के साथ मुंबई आ पहुंची। उन्होंने अनेकों ऑडिशंस दिए, और रिजेक्ट भी हुईं। कितनी ही बार री-टेक्स लिए, उनका मज़ाक भी बना करता था पर वे कभी-भी हताश नहीं हुई और अलग-अलग सेट्स पर जाकर प्रयास करती रहीं। फिर एक दिन उन्हें बालिका वधु के सेट से कॉल आई कि उन्हें सुगना के किरदार के लिए चुन लिया है।

यह उनकी उड़ान की शुरुवात थी, सिलसिला चलता रहा और आज वे कामयाब हुई। विभा इतने में रुकी नहीं, बालिका वधु के बाद उनकी पहचान सुगना जैसी हो गई थी, रोने वाली परेशां महिला जैसी, इसलिए उन्होंने निश्चित किया कि वे कुछ अलग किरदारों में आकर अपनी अलग छवि बनाना चाहती थीं। उन्होंने यह भी कर दिखाया कुछ साल बिना काम के रहीं लेकिन आज वे MTV के शो कैसी ये यारीआं में अभिनय कर रहीं हैं।
विभा का कहना है-
“शहर छोटा हुआ तो क्या हुआ,
मेरे सपने बड़े थे,
मौके कम थे तो क्या हुआ,
मेरी उमीदें बढ़ी थी,
रास्ते में आने वाली वो दिक्कते अनेक थीं,
लेकिन उनसे लड़ने की हिम्मत मुझमें कई ज़्यादा थी।”

हिम्मत के साथ पोलियो से लड़कर बने राजिंदर रहेलु नेशनल लेवल वेट लिफ्टर !

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं जो पोलियो होने के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे खेल में भाग ले जहां अत्यधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है? राजिंदर सिंह रहेलु इस सवाल का जवाब हैं।

इंडियन पैरा ओलम्पिक पॉवरलिफ्टर रहेलु का जन्म 22 जुलाई 1973 को पंजाब के जलंधर ज़िले के मेहसमपुर गांव के एक नुक्ता कश्यप राजपूत परिवार में हुआ था। छोटे से परिवार में हुए इनके जन्म की खूब खुशियां मनाई गई, लेकिन 8 महीने के बाद इनकी माँ को इनके पोलियोग्रस्त होने का पता चला। एक ऐसी बीमारी जिसका पता चलने के बाद सारे परिवार में मायूसी छा गई।

इसके बाद लोगों ने उनके परिवार को सहानुभूति देना शुरू कर दिया, वहीं कुछ लोग यह भी कहने लगे, “ऐसी ज़िन्दगी होने से अच्छा तो ना होना है।” लोगों के इन शब्दों के जवाब में रहेलु आज एक अर्जुन अवार्डी हैं, जो उन्हे डॉ. कलाम  द्वारा प्राप्त हुआ। इनकी यह कहानी इस वीडियो में देखें-

 

रहेलु का कहना है कि उनके परिवार का साथ और साहस, उनकी हिम्मत बना। पॉजिटिव थिंकिंग, आगे बढ़ते रहना, पीछे मुड़ के तो देखना ही नहीं है, ऐसी बातों ने रहेलु को इतना तो बता ही दिया था कि शारीरिक विकलांगता यानी फिजिकल डिसेबिलिटी उनके जीवन में बाधा नहीं है।

इस एहसास और उनके माता-पिता की हिम्मत के साथ उन्होंने 1996 में सुरेंद्र सिंह राणा से वेट लिफ्टिंग सीखनी शुरू की और उन्हें काफी सराहना मिली। इसी सराहना से मिले जोश से रहेलु ने कोच पवन गोनेल्ला के साथ मिलकर पंजाब के लिए गोल्ड जीता और एशियन बेंच प्रेस चैंपियनशिप दिल्ली में पहला अटेम्प्ट दिया। 1998 में वो नेशनल पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप के विजेता बने, एथेंस (ग्रीस) में 2004 समर पैरा ओलम्पिक्स में 56 किलोग्राम श्रेणी में भाग लिया, 157.5 किलो वजन का भार उठाने के बाद उन्होंने अंतिम स्टैंडिंग में चौथा स्थान हासिल किया। 2006 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया और 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में वह सिल्वर विजेता रहे। इस तरह उनकी उपलब्धियों का सिलसिला बढ़ता रहा।

इस सफर के दौरान उन्होंने अनेकों कठनाइयों का सामना किया, जहां उन्हें आने-जाने में दिक्कतें आई लेकिन उन्होंने उस समस्या का हल ढूंढा और एक सस्ती सी व्हील चेयर अपने लिए बनवाई। उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उनका मानना है, “कोई  भी परिस्थिति आपको रोक नहीं सकती।”  रहेलु आज ‘पंजाब सोशल आर्गेनाइजेशन’ का हिस्सा हैं और ‘पैरा स्पोर्ट्स एकैडमी पंजाब’ में वेट लिफ्टिंग कोच भी हैं।

“पैसे से ज़्यादा हिम्मत के दो शब्द इंसान को कहां पहुंचा सकते हैं”, इसका उदाहरण रहेलु खुद हैं। एक गरीब  परिवार का विकलांग बालक आज इंडियन पैरालिम्पिक पॉवरलिफ्टर है।

 

“औरतों के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाओ”- डॉ. दिव्या गुप्ता

रेप, बलात्कार, छेड़छाड़ ये सारे शब्द सुनते ही आप सभी को क्रोध आता होगा। हम सभी को घृणा होती है, निराशा होती है, गुस्सा भी आता है, लेकिन क्या हम इन सब को महसूस करने के अलावा कुछ और करते हैं। जवाब होगा हाँ, क्योंकि आपको लगता है कि सड़कों पर नारे लगाना, रैलियां निकालना, कैंडल मार्च करना यह सब इन समस्याओं का हल है। आप बिलकुल गलत सोचते हैं, इन सब को रोकने के लिए असल में क्या करना चाहिए, इसका उदाहरण हैं इंदौर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. दिव्या गुप्ता। डॉ. दिव्या ने अपनी निराशा और क्रोध को ऐसे ही शांत नहीं होने दिया। उन्होंने इन सब घटनाओं से औरतों, लड़कियों को बचाने का अभियान शुरू किया।

इनकी प्रेरणादायक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

डॉ. दिव्या ने जस्टिस फॉर ज्वाला नाम के संस्थान को जन्म दिया, जो पीड़ित स्त्रियों के न्याय के लिए काम करता है, उन्हें खुद की आत्मरक्षा करना सिखाता है और उनके अधिकारों से अवगत कराता है। इतना ही नहीं यह संस्थान महिलाओं को शिक्षित करके उन्हें रोजगार भी दिलाता है।

ज्वाला के कुछ ऐसे किस्से हैं जहाँ  उन्होंने साबित किया है कि वे औरतों को इन्साफ दिला रहे हैं । रमीला नाम की एक औरत जिसका पति उस पर रोज़ ही अत्याचार करता था, लेकिन पुलिस ने उसकी FIR दर्ज नहीं करी और फिर ज्वाला ने रमीला के पति को जेल की सजा दिलाई और आज रमीला ज्वाला का एक हिस्सा हैं।  इसके अलावा ज्वाला ने एक 32  वर्षीय महिला सविता की मदद की, जिसका पति उसे पीटा करता था और मारने की धमकी दिया करता था। ज्वाला की टीम ने सविता को आवश्यक कानूनी सहायता, शिक्षा और परामर्श दिया। वह अब कॉलेज में एक शिक्षक हैं और स्वतंत्र रूप से अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं।

यह एक थप्पड़ है समाज के उस हर व्यक्ति पर जो बस तमाशा देखना जानता है।

जस्टिस फॉर ज्वाला के पीछे डॉ. दिव्या का मुख्य उद्देश्य कमजोर महिलाओं को अधिक सशक्त और आत्मविश्वासी बनाना है। ज्वाला की टीम में कुछ प्रशिक्षित पेशेवर हैं जो लड़कियों को आत्मरक्षा के तरीके सिखाते हैं। ज्वाला ने अब तक 75,000 से ज़्यादा  लड़कियों को प्रशिक्षित किया है और आगे भी करता रहेगा।

डॉ. दिव्या का दुर्व्यवहार करने वालों के लिए केवल एक सन्देश है- “जिस क्षण आप हमें छूते हैं, हम एक ज्वाला बन कर आपको जला देंगे।”