अपेक्षाओं से मुक्त होकर आशावादी बनो!

इंसान को कोई और नहीं बल्कि उसकी अपेक्षाएं जिन्हें हम अंग्रेजी में expectations कहते हैं वही धोका दे जाती हैं। अपेक्षाएं पूरी ना हों तो हर किसी को दुःख का आभास होना स्वाभिविक है। उम्र कुछ भी हो अपेक्षाएं सभी को होती ही हैं। बच्चों को परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की, युवाओं को अच्छी नौकरियां चाहिए, माँ – बाप अपनी संतानों के ज़रिए अपने ख्वाब पूरा करना चाहते हैं। लेकिन कभी यह सोचा है कि इन अपेक्षाओं का हमारे जीवन पर कितना प्रभाव पड़ता है। अपेक्षाएं प्रत्येक परिस्तिथि में कष्ट का ही निमित्त बनती है , इसलिए हमें किसी भी व्यक्ति से व परिस्थिति में अपेक्षाएं नहीं केवल आशाएं रखनी चाहिए।

अपेक्षाएं असल में होती क्या हैं?
अपेक्षाएं एक प्रकार से हमारी उम्मीदें होती हैं जो भविष्य से जुडी होती हैं। स्वयं को साबित करने के लिए कुछ कर दिखाने की उम्मीदें या फिर लोगों की हमसे जुड़ीं अपेक्षाएं। अपेक्षाएं पूरी हो जाएं तो सुख देती हैं लेकिन पूरी होने तक तनाव होना निश्चित ही है। अक्सर इन अपेक्षाओं के कारण ही ना जाने कितने लोग चिंताग्रस्त और दुखी हो जाते हैं। अपेक्षाएं सदैव इच्छाओं और आकांक्षाओं को जन्म देती हैं। इच्छा कहती है इस स्तिथि में ऐसा होना चाहिए था यथा इस प्राणी को ऐसा नहीं वैसा व्यवहार करना चाहिए था, किन्तु जब परिणाम हमारे अनुसार नहीं होता तो दुःख होता है।

कैसे हो सकते हैं अपेक्षा से मुक्त ?
आशा शब्द से हम सभी परिचित हैं। अपेक्षा और आशा दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अपेक्षा हमें इस ज़िद्द पर उतार देती है कि जो हमने सोचा है या सपना देखा है वो पूरा होना ही चाहिए नहीं तो हम टूट जाएंगे। वहीँ दूसरी ओर होती ही आशाएं जो हमें यह नहीं कहती कि यह काम नहीं हुआ तो जीवन खत्म किन्तु आशा प्रकाश की भांति , किरणों की भाँती है और इसलिए एक आशावान व्यक्ति कभी भी किसी भी परिस्तिथि में निराश नहीं होता, उसे सदैव कुछ अच्छा होने की आशा रहती है और आशा की यह स्वतंत्रता दुःख सहने का बल प्रदान करती है। यदि परिणाम अपेक्षा के अनुकूल न हो तो उसे स्वीकार करने का साहस भी प्रदान करती है।

उम्मीदें रखो लेकिन पूरी न होने पर टूटना मत!
हमने इस पूरे लेख के दौरान इसी बात पर चर्चा करी कि उम्मीदें होनी चाहिए लेकिन साथ में आशावादी होना अनिवार्य है ताकि हम बिखरे नहीं बल्कि दुबारा कोशिश करने के लिए सक्षम बनें। जिस प्रकार एक माता-पिता अपने बच्चों से पढ़-लिखकर कुछ अच्छा बनने की उम्मीद रखते हैं, वह उचित है किन्तु उसके साथ माता-पिता को खुद भी आशा रखनी चाहिए और अपने बच्चों का हौसला भी बढ़ाना चाहिए ताकि ना वे निराश हों और नाही उनके बच्चें।
प्रत्येक समय कुछ अच्छा होगा ही यह दिमाग में हमेशा रखना ही चाहिए क्योंकि बुरा सोचने से कौनसा कुछ अच्छा हो ही जाता है।