घर बैठे बस मुंह से तलाक-तलाक-तलाक कह कर न जाने कितनी ही मुस्लिम महिलाओं को तलाक दे दिया जाता है। ट्रिपल तलाक इस समुदाय में महिलाओं के लिए एक श्राप समान है। जिसके खिलाफ हमारे देश में कोई भी कानून नहीं है। ऐसे ही एक दिन चिट्ठी द्वारा आफरीन रहमान को अपने शौहर द्वारा तलाक दे दिया गया। लेकिन आफरीन उन औरतों में से नहीं थी जो इस तलाक को स्वीकार कर एक बेबस जीवन व्यतीत करती रहती। मध्यम वर्गीय परिवार की आफरीन ने अपने हालातों और कठिन परिस्थितियों से घबराए बिना अपने और मुस्लिम महिलाओं के न्याय के लिए तीन तलाक के खिलाफ स्वयं लड़ने का फैसला किया। आज आफरीन रहमान ट्रिपल तलाक के खिलाफ याचिका दर्ज करने वाली उन पांच महिला याचिकाकर्ताओं में से एक हैं।
इनकी लड़ाई ने भारत के ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय को ट्रिपल तलाक के खिलाफ फैसला देने पर मजबूर कर दिया। इनका संघर्ष जानने के लिए देखें यह वीडियो।
2014 में आफरीन का निकाह एक आदमी से वैवाहिक पोर्टल के माध्यम से हुआ। शादी के बाद के कुछ दिन तो वैसे ही थे जैसे होने चाहिए लेकिन 2-3 महीनों बाद उनके पति और परिवार ने उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। मानसिक यातना के साथ उन्हें शारीरिक तौर पर भी पीड़ित किया जाने लगा। 2015 में आफरीन अपने पति का घर छोड़ अपने माँ के रिश्तेदारों के साथ रहने लगी। आफरीन ने कभी किसी को कुछ नहीं बताया और ना ही कोई शिकायत जताई। अपनी माँ को खो देने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें एक चिट्ठी द्वारा तलाक दे दिया गया। इस बात को अनुचित और अमान्य बताते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक के खिलाफ याचिका दर्ज की।
उनकी यह लड़ाई धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि केवल ट्रिपल तलाक के खिलाफ है। उनकी याचिका न्यायलय में स्वीकारी गई और ट्रिपल तलाक के खिलाफ लोकसभा में बिल भी पास हो चुका है, जल्द ही इसके खिलाफ देश के संविधान में उचित कानून बन जाएगा। आज आफरीन बहुत से वाद-विवाद का हिस्सा बनती हैं और ट्रिपल तलाक के खिलाफ एक महिला एक्टिविस्ट के तौर पर महिलाओं के लिए काम कर रही हैं।
आफरीन रहमान- “औरत खुद के लिए आवाज़ उठा सकती है।”