7 साल की उम्र में हुई यौन शोषण की शिकार, आज बनीं एक विश्वप्रसिद्ध योगिनी और नर्तकी

ज़िन्दगी में ऐसा कितनी ही बार होता है जब हम सारी उम्मीदें हार चुके होते हैं। अभी आप भी गिनोगे तो हज़ारों ऐसी बातें होगी जिनके कारण हम अपनी ज़िन्दगी, समस्याएं और परिस्थितयों को कोसने लग जाते हैं। चारों तरफ बस नकारात्मकता ही होती है और हमारी काम करने की, खुश रहने की क्षमता ख़त्म होने लगती है। इनका समाधान है योगा । इन सब की वजह से नौकरी हो या निजी ज़िन्दगी की समस्याएं, आप सबसे सही तरीके से सौदा कर ही नहीं पाते हैं। इन सब का क्या हल है ? यहाँ हम सिर्फ बातों के ज़रिए आपको इन सब से लड़ने के तरीके नहीं बातएंगे। आप के सामने उदाहरण स्वरुप हैं नताशा नोएल एक ऐसी लड़की जिसने हज़ारों मुश्किलें सहीं, जिसका रेप हुआ, कितने ही दिनों तक डिप्रेस रही और आज एक विश्व प्रसिद्द योगिनी, फिटनेस ट्रेनर और नर्तकी हैं।

नताशा का कहना है कि “योग मेरे लिए आज़ादी है, मुक्ति है, खुद को समझने का तरीका है, खुद को ढूंढ़ने का, मुश्किलों में शांत रहना का ज़रिया है । सारी मुश्किल से मुश्किल और घिनौनी स्थितियों में खुद को स्थिर रखने का तरीका है योग। अपने अंतर्मन को समझना, सारे नकारत्मक खलायों को मिटाना है तो योग से अच्छा और कुछ नहीं है।” यदि आप भी अपनी परेशानी से मुक्त होना चाहते हैं और खुद को मानसिक एवं शारीरिक सुख देना चाहते हैं तो योग अपनाएं।

नताशा की ज़िन्दगी में बचपन से ही ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसके कारण वे बहुत नकारत्मक हो गई थी। फिर उन्होंने खुद को उस सब से दूर रखने के लिए नृत्य शुरू किया। उन्होंने पांच साल तक बहुत सी डांस फॉर्म्स सीखी और डांस के ज़रिये उन्हें एहसास हुआ कि वो कितनी खूबसूरत हैं। लेकिन फिर एक एक्सीडेंट के कारण उन्हें डांस छोड़ना पड़ा। 1 साल तक बिना कोई नृत्य करे रहीं और उसके बाद उन्होंने योग करना शुरू किया और आज वे योग ट्रेनर हैं। योग के ज़रिए खुद को पा कर, उन्होंने अपनी मन की शान्ति और विचारों की आज़ादी पाई। आज नताशा हज़ारों-लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं।

4 साल से यह आदमी अकेले कर रहा है “दांडी बीच” की सफाई : कालू डांगर

कितने ही लोग अपनी महानता साबित करने के लिए झाड़ू उठाकर कुछ दिन साफ़-सफाई करते हैं, नारे लगते हैं और फिर घर जाकर बैठ जाते हैं। लेकिन वहीँ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना नाम अखबार में नहीं छपवाना चाहते और नाही कोई दिखावा करते हैं। उनका मक़सद केवल एक ही होता है देश को साफ़ रखना। ऐसा ही एक उदाहरण हैं दांडी के रहने वाले कालू डांगर। गुजरात के सभी बीच में सबसे साफ़ बीच “दांडी बीच” है जिसकी वजह कोई और नहीं बल्कि यह आदमी है जो पिछले चार वर्षों से दांडी बीच की सफाई को अपना सर्वोपरि कार्य मानते हैं। इनकी कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk।

40 वर्षीय कालू डांगर एक सामाजिक वैज्ञानिक हैं। उन्होंने अपनी पढाई सामाजिक कार्य के विषय में की है और साफ़- सफाई का महत्तव समझते हुए, वे प्रतिदिन सुबह 6 :30 बजे अपना घर छोड़ कर हाथों में एक बड़ा सा बैग लेके दांडी बीच की सफाई करने निकल जाते हैं। वे दांडी बीच के सामने का लगभग 3 वर्ग किलोमीटर तक की जगह में आगन्तकों द्वारा फैलाय हुए कचड़े को खुद उठाते हैं। 2 घंटे तक लगातार सफाई करने के बाद डांगर चौपाटी के सामने के प्रवेश द्वार और गार्डन को साफ़ करते हैं। साथ ही आगन्तकों के पीने का पानी भी वे स्वयं ही वहां रखते हैं।

कालू डांगर का कहना है कि उन्होंने ना जाने कितनी ही बार वहां घूमने आय आगन्तकों को व वहां काम कर रहे लोगों को समझाया है कि कचड़ा ना फैलाएं लेकिन लोगों को समझ ही नहीं आता। तो फिर उन्होंने बोलना ही बंद कर दिया और खुद ही सफाई करते हैं। देश के प्रति ज़िम्मेदारियाँ किसी को समझाई नहीं जा सकती जब तक लोगों को खुद इस बात का एहसास ना हो। समाज को बदलना है स्वच्छ रखना है तो हमें खुद ही कदम उठाने होंगे।

“जो दिल कहे वो करने की कोशिश ज़रूर करो” : व्रजेश हिरजी

आपसे लोग क्या चाहते हैं और आप खुद से क्या चाहते हैं इन दोनों बातों में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है । व्रजेश हिरजी जिन्हें हम गोलमाल रिटर्न्स जैसी बहुत सी लोक प्रिय फिल्मों में देख-चुके हैं उनका सफर भी आसान नहीं था। एक तरफ उनका परिवार चाहता था कि वे ट्रैवल एजेंसी खोल लें लेकिन उन्हें तो कुछ और ही मंज़ूर था। वे हमेशा से एक एक्टर बनना चाहते थे ताकि लोगों का मनोरंजन कर सकें। हिरजी की कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk।

 

इस टॉक के दौरान व्रजेश ने कुछ बातें एक दम साफ़ कर दी कि जब ज़िन्दगी आपकी है, आपको खुद जीनी है, मुसीबतें खुद झेलनी हैं तो फिर दूसरों के अनुसार अपने जीवन के लक्ष्य आधारित करने की कोई ज़रूरत है ही नही। उन्होंने एक्टर बनने से पहले यह नहीं सोचा था कि वे टीवी के या फिल्मों के या फिर थिएटर एक्टर बनेंगे, उनका लक्ष्य केवल एक्टर बनना था। उन्होंने अपने काम पर खूब ध्यान दिया खूब सीखा और आज वे टीवी, फिल्म और थिएटर सब में काम कर चुके हैं।

यदि आप अपने आप को बेहतरीन बनाना चाहते हैं तो अपनी तुलना दूसरों से करना बंद करें। एक सफल व्यक्ति वही होता है जो अपनी तुलना हमेशा खुद से ही करता है। हमें बस यही कोशिश करनी चाहिए कि हम हर दिन अपने आप से बेहतर बनें। अपने काम में सुधार लाएं और अपनी कमियों को खत्म करके उनमें निपुण बनें। दूसरों से तुलना करने पर केवल हमारा मनोबल कमज़ोर होता है और वहीँ खुद से बेहतर बनने पर आत्मविश्वास बढ़ता है।

“डर से डरो नहीं, डर का मज़ा लेना सीखो ” व्रजेश कहते हैं कि अपने दिल की बात सुनकर उसे पूरा करने में अगर डर लगे तो उसका हिम्मत से मुकाबला करो। अपनी ख्वाइशों को एक बार मौका तो ज़रूर दो उन्हें पूरा करने की एक कोशिश तो बेबाक होकर करो।

क्या आप अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं?

इंसान के निर्णय सदैव ही उसकी प्रत्येक ज़रूरत या फिर सुविधा अनुसार ही लिए जाते हैं। अनेकों बार लोग 2 चीज़ों के बीच फस भी जाते हैं। इस स्थिति में ज़्यादातर लोग अपने निर्णय खुद लेने में असमर्थ होते हैं और किसी दूसरे पर आश्रित हो जाते हैं। वहीँ देखा जाए तो एक सफल और सक्षम व्यक्ति वही होता है जो अपने निर्णय किसी दुविधा में फसे बिना स्वयं ले सके। इस बात में फसे रहना कि यह हमारे लिए सुविधाजनक है या नहीं, हम यह सोचकर अपने सुविधा क्षेत्र से निकलना ही नहीं चाहते। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे उचित निर्णय लिए जाएं और उनका क्या महत्तव है।

कैसे लाएं विचारों में स्पष्टता?

किसी भी विषय पर निर्णय लेते समय या किन्हीं दो बातों के बीच चुनाव करते समय हमारे विचारों कि स्पष्टता अति आवश्यक होती है। यदि हमारे दिमाग में सही तर्क नहीं होंगे तो हम निर्णय ले ही नहीं सकते हैं। इसीलिए हमें निर्णय लेते वक़्त दोनों विकल्पों के बारे में तर्क सहित विचार करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या उचित है। दस लोगों से बात करने की वजह केवल कुछ विशेषज्ञों से ही राय लें। जितना हो सके उतना चीज़ों का गहराई से पता लगाएं और फिर निर्णय लें।

आप क्या चाहते हैं ?

खुद से यह प्रश्न पूछिए कि आप क्या चाहते हैं। बहुत सी बार ऐसा होता है कि हम कोई ऐसा कार्य या नौकरी करने में जीवन बिता देते हैं जो हम करना ही नहीं चाहते। उस कार्य को करने से ना तो हमारा कोई व्यक्तिगत विकास होता है और नाहीं कार्य क्षेत्र में कोई तरक़्क़ी मिलती है। हम काम बस इसलिए कर रहे होते हैं क्योंकि हमें वेतन मिल रही होती है और कुछ नहीं। असल में देखा जाए तो हम खुद खर्च हो रहे होते हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि आप खुद से सवाल पूछें कि आखिर आप क्या चाहते हैं और फिर किसी विषय पर निर्णय लें।

जोखिम उठाने से ना डरें !

यह आवश्यक नहीं की आपका हर फैसला सही ही हो। इन्सान जन्म से ही सब कुछ सीख कर नहीं आता। गल्तियां करता है और फिर उसके काम में पूर्णता आती है। अपनी सोच और समझ के साथ ही निर्णय लें, लेकिन इतना भी ना सोचें कि आप दुविधा में फस जाएं। जो आपका दिल कहे और दिमाग कहे हाँ सही है, बस उसे चुनें और फिर गलत भी निकलता है तो कोई नहीं गल्तियों से ही सीख मिलती है। दृढ़ता के साथ निर्णेय लेने की आदत डालें और उसपर अमल करें, इससे आपको आत्मविश्वास भी मिलेगा और निर्णय लेने में आसानी होगी।

दृष्टिकोण में परिवर्तन होगा तभी यह समाज बदलेगा।

दृष्टिकोण यानी आपके और हमारे नज़रिए का परिवर्तन ही सबसे बड़ा परिवर्तन है। अपनी सीमा के संकीर्ण दायरे को बढ़ाकर विशाल क्षेत्र तक विकसित करने का नाम ही विकास है। लेकिन क्या हमारे देश का समाज वास्तविकता में विकास कर रहा है? इस सवाल का जवाब है नहीं। केवल इकोनॉमिक स्तर पर तरक़्क़ी कर लेने से देश की सोच व मनुष्य का विकास नहीं होता है।

क्या है इस समाज की सोच?
समाज में घटित होती आ रहीं बहुत सी घटनाएं जो हमारे समाज का मानसिक स्तर साफ़ तौर पर दर्शाती हैं। यौन-शोषण, धर्म विभाजन, कचड़ा साफ़ करना हमारा काम नहीं है, लड़का-लड़की साथ घूम रहे हैं तो कुछ गड़बड़ ही है, लड़की के साथ छेड़-छाड़ हुई तो कारण उसके कपड़े होंगे, लव मैरिज तो पाप है और पता नहीं क्या-क्या, इस समाज के लोगों की छोटी सोच ही है जिसके कारण देश विकास कर ही नहीं पा रहा है। इस को बदलने के लिए आंदोलन नहीं बल्कि लोगों के दिमाग के दरवाज़े खोलने की ज़रूरत है। छोटी सोच अज्ञानता के कारण ही होती है, यदि लोग पढ़े-लिखे होंगे तो वो नई चीज़ों से अवगत होंगे और बढ़ती सोच के साथ खुद भी नया वक़्त अपना पाएंगे।

क्या है देश के मीडिया की जिम्मेदारी?
एक जगह से दूसरी जगह लोगों तक हर प्रकार की बात मीडिया द्वारा ही पहुँचती है। वहीँ हाल में ही हुए आसिफा रेप केस को मीडिया ने धर्म का मुद्दा बनाकर दिखा दिया, जो की सरासर गलत था । यौन शोषण होना किसी धर्म का कारण बिल्कुल भी नहीं है। इस मुद्दे को लेकर देश के कानून पर सवाल उठाए जा सकते थे, लोगों को जागरूक किया जा सकता था लेकिन मीडिया ने तो केवल हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर ही ध्यान दिया। भारत देश के कानून के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना इस मीडिया का ही काम है। हमारी ज़िम्मेदारी भी बराबर की है कि हम कोई भी गलत काम न होने दें और नाही खुद से करें।

कैसे बदलेगा समाज?
बेटे और बेटी दोनों को ही सामान अवसर दो। लड़के-लड़कियों से अधिक मजबूत हैं यह टिप्पणी करना बंद करो। दोष कपड़ो में नहीं लोगों की नज़रों में है यह बात मान लो। अपने आस-पास की सफाई तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है और ऐसा करने से तुम छोटे नहीं हो जाओगे। घर बनाने के लिए पेड़ काट रहे हो तो उन्हें लगाना मत भूलना। बदलाव की शुरुवात तुम्हारे ही घर से और तुमसे ही होगी तो आज ही फैसला करो ऐसा ही भारत चाहिए या सच में विकास करना चाहते हो।

अपेक्षाओं से मुक्त होकर आशावादी बनो!

इंसान को कोई और नहीं बल्कि उसकी अपेक्षाएं जिन्हें हम अंग्रेजी में expectations कहते हैं वही धोका दे जाती हैं। अपेक्षाएं पूरी ना हों तो हर किसी को दुःख का आभास होना स्वाभिविक है। उम्र कुछ भी हो अपेक्षाएं सभी को होती ही हैं। बच्चों को परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की, युवाओं को अच्छी नौकरियां चाहिए, माँ – बाप अपनी संतानों के ज़रिए अपने ख्वाब पूरा करना चाहते हैं। लेकिन कभी यह सोचा है कि इन अपेक्षाओं का हमारे जीवन पर कितना प्रभाव पड़ता है। अपेक्षाएं प्रत्येक परिस्तिथि में कष्ट का ही निमित्त बनती है , इसलिए हमें किसी भी व्यक्ति से व परिस्थिति में अपेक्षाएं नहीं केवल आशाएं रखनी चाहिए।

अपेक्षाएं असल में होती क्या हैं?
अपेक्षाएं एक प्रकार से हमारी उम्मीदें होती हैं जो भविष्य से जुडी होती हैं। स्वयं को साबित करने के लिए कुछ कर दिखाने की उम्मीदें या फिर लोगों की हमसे जुड़ीं अपेक्षाएं। अपेक्षाएं पूरी हो जाएं तो सुख देती हैं लेकिन पूरी होने तक तनाव होना निश्चित ही है। अक्सर इन अपेक्षाओं के कारण ही ना जाने कितने लोग चिंताग्रस्त और दुखी हो जाते हैं। अपेक्षाएं सदैव इच्छाओं और आकांक्षाओं को जन्म देती हैं। इच्छा कहती है इस स्तिथि में ऐसा होना चाहिए था यथा इस प्राणी को ऐसा नहीं वैसा व्यवहार करना चाहिए था, किन्तु जब परिणाम हमारे अनुसार नहीं होता तो दुःख होता है।

कैसे हो सकते हैं अपेक्षा से मुक्त ?
आशा शब्द से हम सभी परिचित हैं। अपेक्षा और आशा दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अपेक्षा हमें इस ज़िद्द पर उतार देती है कि जो हमने सोचा है या सपना देखा है वो पूरा होना ही चाहिए नहीं तो हम टूट जाएंगे। वहीँ दूसरी ओर होती ही आशाएं जो हमें यह नहीं कहती कि यह काम नहीं हुआ तो जीवन खत्म किन्तु आशा प्रकाश की भांति , किरणों की भाँती है और इसलिए एक आशावान व्यक्ति कभी भी किसी भी परिस्तिथि में निराश नहीं होता, उसे सदैव कुछ अच्छा होने की आशा रहती है और आशा की यह स्वतंत्रता दुःख सहने का बल प्रदान करती है। यदि परिणाम अपेक्षा के अनुकूल न हो तो उसे स्वीकार करने का साहस भी प्रदान करती है।

उम्मीदें रखो लेकिन पूरी न होने पर टूटना मत!
हमने इस पूरे लेख के दौरान इसी बात पर चर्चा करी कि उम्मीदें होनी चाहिए लेकिन साथ में आशावादी होना अनिवार्य है ताकि हम बिखरे नहीं बल्कि दुबारा कोशिश करने के लिए सक्षम बनें। जिस प्रकार एक माता-पिता अपने बच्चों से पढ़-लिखकर कुछ अच्छा बनने की उम्मीद रखते हैं, वह उचित है किन्तु उसके साथ माता-पिता को खुद भी आशा रखनी चाहिए और अपने बच्चों का हौसला भी बढ़ाना चाहिए ताकि ना वे निराश हों और नाही उनके बच्चें।
प्रत्येक समय कुछ अच्छा होगा ही यह दिमाग में हमेशा रखना ही चाहिए क्योंकि बुरा सोचने से कौनसा कुछ अच्छा हो ही जाता है।

Tension Free रहोगे तो ज़िन्दगी आसान होगी!

खुश रहने का मतलब यह नहीं होता कि आपके जीवन में कोई दुःख है ही नहीं बल्कि उसका मतलब यह है कि आप अपनी परेशानियों और दुःख से उठकर जीने की हिम्मत रखते हैं।
Tension हम सभी की ज़िन्दगी का वो शब्द है जिससे हम दिन में ना जाने कितनी ही बार गुज़रते हैं। देखा जाए तो ज़्यादातर लोग उतने ही खुश रहते हैं, जितना वो अपने दिमाग में तय कर लेते हैं। यदि हम इससे थोड़ा ज़्यादा करें, थोड़ा और खुश रहने की कोशिश करें तो क्या पता ज़िन्दगी और आसान एवं बेहतर हो जाए। एक बार आज़माने में क्या जाता है।

हँसने – मुस्कुराने की आदत डाल लो।

ज़िन्दगी में एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि हमें हँसने-मुस्कुराने की आदत डाल लेनी चाहिए।
हँसते हुए चेहरे में कभी तनाव नहीं होता और हँसते-मुस्कुराते हुए कार्य करने से हमारी कार्य करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। चिकित्सकों के अनुसार – हँसना मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा प्राकृतिक पोषण है। इसी कारण डॉक्टर अक्सर यही सलाह देते हैं कि खुश रहिए और मुस्कुराते रहिए तो ज़िन्दगी सरल होगी।
जोश Talks स्पीकर विपिन शर्मा ने कहा- “एक मुस्कराहट सौ मुश्किलों को हरा देती है।”

सफलता में रुकावट होती है Tension!

एक आम जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति क्यों हमेशा खुश रहता है और हम जो सफलता के पीछे भागते हैं उन्हें हज़ारों बातों का तनाव होता है। जवाब यह है कि वो आम व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुसार सफल हो चुका होता है किन्तु हम सभी सफलता प्राप्त करने की दौड़ में खुद को खुश रखना भूल जाते हैं और हमारे पास बचता है तो बस तनाव। अब यदि तनाव लेकर बैठेंगे तो हम कैसे अपनी रचनात्मक कला का इस्तेमाल करके सफलता पा सकेंगे। कुछ अच्छा करने के लिए एक खुश मन का होना बेहद आवश्यक है। तो आज से ही अपना काम चेहरे पर मुस्कान के साथ करिए।
जोश Talks स्पीकर कुसुम तोमर ने कहा- “जब तक सांस है, तब तक हंस कर लड़ो।”

कैसे रहे तनाव मुक्त?

अब हमने ऊपर यही पड़ा की टेंशन ना लेने से क्या होता है लेकिन टेंशन फ्री कैसे रहें?
इस सवाल का जवाब बिल्कुल आसान है और इसका जवाब हमारे पास ही होता है क्योंकि टेंशन तभी आती है जब हम अपने काम को समय पर पूर्ण करने में असफल होते हैं। ऐसा क्यों होता है जब हम अपना समय इधर- उधर की बातों में बर्वाद करते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है कि तनाव होगा ही। इसका एक मात्र उपाय है कि आप अपने निशदिन किए जाने वाले काम में दिए जाने वाले समय का उचित विभाजन करें। कोनसा कार्य कितना ज़रूरी है उस अनुसार काम को ख़तम करें और अंतिम समय के लिए कुछ भी शेष ना रखें, प्रत्येक कार्य की प्राथमिकता निश्चित करना आपकी ज़िम्मेदारी है ताकि कोई अनावश्यक कार्य सिर पर ना आए। सदैव कोशिश यही रहनी चाहिए की इन बातों को आदत में लाया जाए साथ ही दिमाग में यह बिठा लिया जाए कि Tension लेने से कोई भी कार्य या समस्या का हल प्राप्त नहीं होता है।
जोश Talks स्पीकर श्याम पालीवाल ने कहा – “आज का काम आज ही करो, कल पर मत छोड़ो।”

अपनी पहचान बनानी है तो किसी को Ideal मत बनाओ!

कौन सफल होना नहीं चाहता?
दुनिया में सबसे अलग दिखने का सपना किसका नहीं होता?
ऊंचे मुकाम हासिल करना सभी की ख्वाहिश होती है। जब ख्वाहिश खुद की होती है तो फिर हम ये क्यों अपने दिमाग में बिठा के रखते हैं कि हमे उनके जैसे बनना है। यदि सपने आपके हैं, ख्वाहिशे आपकी हैं, मुकाम आपकी पसंद के हैं तो फिर किसी और के जैसा क्यों बनना।
क्यों न खुद की ही एक पहचान बनाई जाए। यानी हम सभी को अपना खुद का Thumb Impression ढूंढ़ना चाहिए।  जब हमारी छाप ही अलग है तो क्यों माँ-बाप, दोस्तों या फिर और लोगों की वजह से अपनी पहचान का चुनाव करना। वो करो जो तुम चाहो, जो तुम्हारा सपना है, जिसमें तुम उत्तम हो।
जोश Talks स्पीकर परेश गुप्ता ने कहा – “अपना Thumb Impression ढूंढो क्योंकि तुम अलग हो।”

क्यों आवश्यक है खुद की पहचान?
हमारे आस-पास हम हज़ारों ऐसे लोग देखते हैं जो कहीं न कहीं अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि क्या ये दुनिया सभी को याद रखेगी। तो इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं ! क्योंकि इस दुनिया का रिवाज़ ही यही है जो कुछ अलग और नया अपने अंदाज़ में करते हैं तो ही आपका नाम विश्वप्रसिद्ध हो पाता है।
हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि ये देखो इन्होंने यह महान काम किया तुम भी इन्हीं के जैसे बनना। क्यों किसी के जैसे बनना है, खुद का कुछ करो जिसमें आपकी रूचि हो, जो आप किसी के डर से नहीं बल्कि प्यार से कर सको।
जोश Talks स्पीकर शीतल भान ने कहा- ” जो भी काम करो डर के नहीं बल्कि प्यार से करो।”

दूसरों की Copy मत करो!
किसी को अपना Ideal मत बनाओ से तात्पर्य यह है कि सफल होना है तो दूसरों की नक़ल नहीं करनी है। क्योंकि नक़ल से सिर्फ बराबरी हो सकती है उनसे ऊपर नहीं उठा जा सकता और नाहीं खुद की पहचान बनाई जा सकती है। आप उनके गुणों को अपना सकते हैं परन्तु उन्हीं के जैसा बनना है यह सही नहीं है।  एक पुरानी कहावत है कि -“जब लोग आपकी नक़ल करने लगें तो समझ जाना कि आप अपने जीवन में सफलता की ओर बढ़ रहे हैं।” यह कहावत साफ़ बताती है कि नक़ल उन्हीं की होती है जो कुछ अलग करके सफल होते हैं तो बस आप भी नक़ल नहीं खुद के विचारों और नीतियों से अपनी दिशा बनाएं।
जोश Talks स्पीकर मेधांश मेहता ने कहा- “मुकाबला खुद से करें, दूसरों से नहीं।”

क्यों ज़रूरी है नया करने और सीखने की लगन?
व्यक्ति की उम्र चाहे जो भी हो, उसे सदैव अपने मन में कुछ नया सीखने और करने की ललक रखनी चाहिए। कई लोग यह सोचने लगते हैं कि बहुत सीख लिया, अब और सीखकर क्या करना है। व्यक्ति की इस तरह की सोच उसके अंदर आगे बढ़ने की ललक को रोक देती है। चूँकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए सीखने की उम्र पर कोई सीमा निर्धारित नहीं करनी चाहिए और ज्ञान की प्यास हमेशा रखनी चाहिए। यही वो 2 चीज़ें हैं जिनकी वजह से आप कुछ अलग और नया करके खुद की एक अलग पहचान बना सकते हैं ताकि दुनिया के सभी लोग आपको प्रेरणा मानें।
जोश Talks स्पीकर आकाश मेहता ने कहा – “आपकी सबसे बड़ी चुनाती है कि आप खुद को खुद से बहतर बनाएं।”

“फिल्म मुझे नहीं मैं फिल्म को बनाऊंगा” : रामेश्वर भट्ट

स्पाइडर मैन की फिल्म देखी तो स्पाइडर मैन बनना था, मैरी कॉम देखी तो सबसे लड़ना था, भाग मिल्खा भाग देखी तो सारी मारथौंस दौड़नी थी  अर्थात जो भी देखता था वही बनना चाहता था।
अक्सर ऐसा होता है बचपन में हम जो भी फिल्म के किरदार देखते थे हमें वैसा ही बनना होता था। ऐसा ही कुछ होता था अहमदाबाद के रामेश्वर भट्ट के साथ। वे कोई भी फिल्म देखते थे तो उन्हें उसी के किरदार में ढल जाने का बड़ा शौक था। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि आज वे एक 15 वर्षीय अवार्ड विजेता फिल्मकार बन चुके हैं। इनकी दिलचस्प कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk

अहमदाबाद के रहने वाले रामेश्वर भट्ट एक आकांक्षी फिल्म निर्माता हैं। बचपन से ही खुद को फिल्म के किरदारों में ढालते आ रहे रामेश्वर को एक दिन उनके माता-पिता ने समझाया कि तुम दूसरों की तरह क्यों बन रहे हो, इसमें तुम्हारी पहचान तो कहीं है ही नहीं, इसमें रामेश्वर तो है ही नहीं। उस दिन के बाद से रामेश्वर ने ठान लिया था कि फिल्म उन्हें क्यों बनाएगी वो खुद फिल्म को बनाएंगे
और फिर कुछ ही समय बाद उनके घर पर उनकी माँ की सहेली की बेटी आई जो खुद जगह-जगह जाकर डाक्यूमेंट्री बनाया करती थीं। रामेश्वर ने पहली बार कैमरा, कैमरा स्टैंड, लेंस आदि देखे और जाना कि फिल्म ऐसे बनती हैं। उन्होंने अपनी पहली स्क्रिप्ट गुजराती में लिखी जो की गुजरात सरकार द्वारा पुरूस्कार प्राप्त कर चुकी है।
फिर कुछ समय के बाद जब उनके पास कैमरा नहीं था उन्हें एक फ़ोन मिला और आज तक वे संसाधन पर आश्रित हुए बिना अनेकों शार्ट फिल्म्स और डाक्यूमेंट्री बना चुके हैं। साथ ही उनकी फिल्मों को गुजरात राज्य सरकार एवं UN – World Bank Connect4climate group द्वारा पुरूस्कार प्राप्त हो चुके हैं। रामेश्वर मुंबई के बहुत से फिल्म निर्माण स्टूडियो में ट्रेनिंग लेते रहते हैं। रामेश्वर अपने Iphone पर ही वीडियो रिकॉर्ड करते हैं और उन्हें vlogs, वीडियो प्रयोग, थीम शॉट्स, इंटरव्यू, डॉक्यूड्रामा में बदल कर YouTube पर डालते हैं या फिर फिल्म प्रतियोगिताओं में भेजते हैं।
उनका मानना है कि- जो उपलब्ध है उसका श्रेष्ठा उपयोग करो

सही Planning मुश्किल लक्ष्य को भी आसान बना देती है।

लक्ष्य यानी Aim , हम सभी के पास जीवन के प्रत्येक पड़ाव में कोई न कोई लक्ष्य अवशय होता है। जीवन में लक्ष्य का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि उससे हमारी ज़िन्दगी को एक उचित दिशा मिलती है। यदि आप की ज़िन्दगी में कोई उद्देश्य या लक्ष्य है ही नहीं तो आप एक दिशाहीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं जो की व्यर्थ है।                                                                                                   

रत्नेश पांडेय ने जोश Talks में कहा था – ” जीने की इच्छा और भय का निष्कासन, आपको मुश्किल लक्ष्य भी प्राप्त करा सकता है।” तो खुद को निडर बनाइए और एक इच्छा रखिए कि हमें ये करना है तो आप उस काम में अवशय सफल होंगे।

लक्ष्य क्या होता है ?

लक्ष्य की परिभाषा आज के समय में मानो देश का युवा भूल ही गया है। आधे दूसरों को देखकर वही करना चाहते हैं और बाकियों का कोई लक्ष्य है ही नहीं “जो जैसा है वैसा ही चलने दो” वाली सोच अपनाते जा रहे हैं। जीवन में सम्पन्नता, आत्मविश्वास और एक सम्मान प्राप्त करने के लिए मनुष्य के जीवन में एक निश्चित उद्येश्य या लक्ष्य का होना अनिवार्य है। लक्ष्य यानी हमारे पास एक निश्चित दिशा होना कि हमे यही करना है। लक्ष्य विहीन इंसान  क्रिकेट के खेल में उस गेंदबाज़ की तरह होता है जो गेंद तो फेकता है परन्तु सामने विकेट नहीं होते।

लक्ष्य प्राप्ति में योजनाओं का महत्तव!

योजनाएं यानी कुछ ऐसी निश्चित प्रक्रियाएं जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाने का काम करती हैं। सही योजनाओं का निर्धारण हमें लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग बताता है, जिन पर चलकर हम मंज़िल की ओर बढ़ते हैं। इसलिए योजनाओं के निर्धारण में हमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यदि योजनाएं विफल होती हैं तो हम अपने लक्ष्य से दूर हो जाते हैं। अब योजना तो बना लें पर यह नहीं होना चाहिए कि बस योजना बना ली और अब बैठे हैं, इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि हम योजना के अनुरूप सही गति से आगे बढ़ते रहें। इसलिए योजना वही बनाओ जिसका तुम सही तरीके से पालन कर सको।                                                                                                                   

विभा आनंद ने अपनी जोश Talk में कहा – “मंजिल निश्चित करो, रास्ता खुद मिल जाएगा।”  लक्ष्य निश्चित होने पर उसे कैसे पाया जा सके इसके रास्ते आपको अनेक मिल जाएंगे पर उनमें से कोनसा आपके लिए उपयुक्त है इसका चुनाव आपको ही करना होगा।

प्रयास करने से ना मुकरें !

प्रयास हम सभी के पास एक ऐसा हथियार होता है, जिसके माध्यम से हम कभी पीछे नहीं हटते, हार नहीं मानते और अंततः इसके सहारे अपनी मंज़िल को पा सकते हैं। प्रयास करने में हर्ज़ ही क्या, हर बार एक नए तरीके से कोशिश तो की ही जा सकती है। इसलिए जीवन की किसी भी परिश्थिति में हताश होकर प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए। प्रयास और परिश्रम, दोनों ही आपस में जुड़ें हैं और सफलता की राह में इनका कोई विकल्प नहीं है।                                                       

विक्की रॉय ने अपनी जोश Talk के दौरान कहा – “परिश्रम सफलता की वो चाबी है जो आपकी किस्मत बदल सकती है।”  तो अब अगर किस्मत में बदलाव लाना है तो खुद ही मेहनत करके आएगा अपने आप नहीं।