देशभक्ति का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में आता है वर्दी पहन कर बॉर्डर पर युद्ध करना, गोलियों की आवाज़ें, फौज का भागना। लेकिन क्या बिना बॉर्डर पर गए बिना देशभक्ति नहीं हो सकती? क्या देश का हर व्यक्ति अपने अंदाज़ में देश के लिए समर्पित नहीं हो सकता?
इन सवालों का जवाब हैं भरतपुर, राजस्थान के सुरक्षाकर्मी जीतेंद्र सिंह गुर्जर, जो कुछ कारणों से आर्मी में भर्ती न हो सके। लेकिन इस वजह से उनके अंदर की देशभक्ति कभी खत्म नहीं हुई और उन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही देशभक्ति का एक निराला तरीका निकाल लिया। वह देश की सीमा पर बन्दूक की गोलियों से दुश्मनों को नहीं मारते हैं, लेकिन अपने शब्दों से शहीदों के परिवारों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते हैं जो किसी देशभक्ति से कम नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर मारे जाने वाले शहीदों के परिवारों को पत्र लिखकर दिल से शोक व्यक्त करना और दिलासा देकर उन्हें बताना कि देश को उनके शहीद बेटों पर गर्व है। उनका हर एक पत्र हर उस शहीद के लिए श्रद्धांजलि बन गया।
देश भक्ति की इस अत्तुलनिए कहानी को जानने के लिए देखें यह वीडियो-
इनकी देशभक्ति क्षणिक या मौसमी नहीं है, यह उनका सदाबहार जुनून है। राजस्थान के रहने वाले 38 वर्षीय जीतेंद्र सिंह ने अपने देशभक्ति के सपने को मरने नहीं दिया और उन्होंने एक प्राइवेट सुरक्षाकर्मी की वर्दी पहनकर काम करना शुरू कर दिया।
पिछले 17 सालों में जीतेंद्र, शहीदों के परिवारों को 4000 चिट्ठियां लिख चुके हैं। उनका खुद का शहीद संग्रहालय है जिसमें उन्होंने कारगिल वॉर से अब तक 40,000 शहीदों की जानकारी एकत्रित कर रखी है। वे शहीदों के परिवारों को आर्थिक रूप से मदद नहीं कर सकते किन्तु उन्हें अपने शब्दों के माध्यम से सांत्वना देकर उनका मनोबल बढ़ा सकते हैं और कर रहे हैं।
लम्बाई कम होने के कारण जीतेंद्र आर्मी में भर्ती न हो सके लेकिन उन्होंने वर्दी अवश्य पहनी, तो क्या हुआ वो अगर एक प्राइवेट सुरक्षा कर्मी की है। वे अपने बेटे को आर्मी में ही भर्ती कराएंगे और जब तक वे जीवित हैं, उनकी लिखी चिट्ठियां देशभक्ति के प्रमाण स्वरूप हर शहीद के घर पहुंचती रहेंगी।