This Brave Man Who Sang Jana Gana Mana On Mt. Everest Will Give You Goosebumps!

How many times have you started something and then given up because it’s too hard? In the year 2015, Ratnesh Pandey almost made it to the peak of Mount Everest before a devastating earthquake in Nepal cut short his journey. But instead of letting failure bog him down, he decided to face it head-on. Last year, he mustered up the courage to take over the world’s highest mountain again. The daredevil ended up not only winning over the mountains but also the hearts of every Indian – by becoming the first person to sing the National Anthem on the top of Everest.

A climber by passion, Ratnesh braved many hardships to fulfill his dream of scaling the Everest. From preparing for the climb to battling bad weather conditions, his journey up top was extremely treacherous. Watch the video to find out how Ratnesh overnight became the nation’s pride.

In the video, Ratnesh discusses his rigorous training. “I underwent a very tough practice of more than three months, which included 10 km running, 40 km cycling, half an hour swimming and yoga for 30 minutes, everyday.” In fact, singing the national anthem on the Everest’s peak was a cathartic experience for him. He claims that he immediately felt a lot more calmer and peaceful after crooning “Jan Gan Man”. It also pumped him up to take the journey back.

The mountaineer of Indian Mountaineering Institute dreams of creating awareness for youngsters to come ahead for taking new challenges and complete them. His life lesson is extremely inspiring- “Every mountain top is within reach if you keep climbing.”

Did You Ever Think A Simple Pot Could Start A Sanitary Pad Revolution In India?

When he realized his wife’s social work was in crisis because of sanitary waste disposal problems, Shyam Bedekar vowed to help her solve the problem of the pad. He created a machine named Ashudhdhinashak (an incinerator) to help women get rid of their sanitary napkins easily. His innovation has given millions of girls across the nation access to hygiene.

Sanitation remains a serious issue in rural India. Compared to 96% of women in Europe, only 6% Indian women use sanitary napkins. Shyam realized that there was a need to develop a low-cost incinerator for sanitary disposal, especially for rural areas where there is no system of garbage collection like in cities. If the disposal aspect was taken care of, it would become easier to convince women to use sanitary napkins. Watch the video below as the 55-year-old reveals the efficacy of his ingenious invention.

In the video, the innovator explains what inspired him to come up with Ashudhdhinashak“Priced between ₹18,000 and ₹20,000, the electric incinerators that could help dispose of the used sanitary napkins were simply not affordable. So I designed a machine, keeping in mind that it should be easily acceptable in rural India, it should be cheap and it should be easy to operate.”

This was when Shyam came up with a practical solution: a terracotta incinerator, priced at one-tenth the cost. “You find terracotta pots in villages everywhere, so it does not even grab any attention. And it had to be easy to use because it would be used by women who mostly do household work. They all are comfortable with lighting a chulha. Starting a fire to burn the sanitary napkin inside the incinerator is as simple.”

Shyam has been able to install more than 2,000 such machines at universities, hostels, and schools that come under Sarva Shiksha Abhiyan. His one-of-a-kind invention has changed the face of rural India.

This Fierce Fashion Designer Turned Asst. Police Commissioner Is On A Unique Mission

Never quite sure what she wanted to do with her life, Assistant Commissioner of Police (ACP) Manjita Vanzara spent her twenties dabbling in engineering and fashion designing. This was until she found her true calling in civil services. Her big breakthrough came when she decided to spearhead ‘Suraksha Sahay’– an initiative to improve the standard of women’s lives in the bootlegging business.

ACP Manjita’s story in the starting sounds like the story of just about any common person. But it’s the choices that she took in her life that made the difference and led her to groundbreaking success. Watch the video below as the changemaker reveals what prompted her to sit for the toughest exams in India and the driving force behind her social venture.

In the video, Manjita defends her decision to become a police officer. “If you thought that kicking down doors and nabbing robbers was the only job of cops in India, then you are wrong. We are here to listen to your problems and help in the best way possible.”

The spirited woman beams as she narrates one of her success stories based out of Chharanagar, Ahmedabad. “90% of women in that area are widows and all of them were involved in the bootlegging business. Suraksha Sahay decided to change their mindset and encourage them to do reputed work. We paid them the stipend and collaborated with some reputed brands of the city.” Today that remote region, which was once notorious for its illicit activities, shows no sign of its murky past.

Manjita’s message to all Indian parents is clear: to allow their daughters to join the police force. She also urges the youth to serve the country and set a positive example for the coming generations.

कचरा बीनने से विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर बनने तक, विक्की रॉय का सफर !

कभी प्लास्टिक की थैली मिलती थी, कभी टीन के डब्बे, फिर खाली प्लास्टिक बोतल से अच्छी कमाई हो जाती थी, कचरे बीनने से लोगों के जूठन धोने का उसका प्रमोशन, कमाई तो अच्छी करा देता था और उसमें ही उसकी खुशियां दौड़ जाती थी, पर उसकी ज़िन्दगी की सोच कंधे पर रखे उस बोरे तक सिमित नहीं थी। लोग सोते थे तो सपने आते थे पर उसकी आंखों के सपने उसे सोने ही नहीं देते थे। और ऐसी ही फैली पड़ी कतरने बीन कर विक्की के सपनों का सफर शुरू हुआ जो आज विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर हैं।

इनकी प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

यह कहानी है विक्की रॉय की। बचपन में खुद को अपनी परस्थितियों से आज़ाद करने के लिए, जेब में 1100 रूपए के साथ विक्की दिल्ली आ पहुंचा। लाखों की भीड़ में तेज़ भागते लोगों के बीच, शहर से अनजान एक मासूम, अचानक घबरा गया पर वो अकेला नहीं था, उस भीड़ में मिले उसे कुछ और बच्चे जिन्होंने उसे सलाम बालक ट्रस्ट भेजा।

सलाम बालक में रहने वाले बच्चों की ज़िन्दगी भी ताले में बंद थी इसलिए रॉय वहां से वापिस स्टेशन आ पहुंचा। कचरा बिन कर और जूठन धोकर कमाई करने से निराश हो रहा रॉय एक दिन सलाम बालक के स्वयं सेवक से मिला और फिर “अपना बालक” , सलाम बालक की ही एक ब्रांच में पढ़ाई के लिए चला गया। पढ़ाई से मुंह मोड़ कर रॉय ने ज़िन्दगी को “लेंस”  से देखने का फैसला किया और सलाम बालक पर डाक्यूमेंट्री शूट कर रहे डिक्सी बेंजामिन से फोटोग्राफी की abc सीखी।

“फोटोग्राफी खुद में ही एक भाषा है उसके लिए इंग्लिश, फ्रेंच या जर्मन आने की ज़रूरत नहीं है ” बेंजामिन के इन शब्दों ने रॉय में उसके सपनों को जीने का उत्साह भर दिया। 18 साल की उम्र में सलाम बालक से बिदाई लेकर रॉय ने अनय मान दिल्ली के फोटोग्राफर के साथ तीन साल काम किया और फिर उसके सपनों का सफर शुरू हुआ , अपने बॉस के साथ फॉरेन ट्रिप्स पर जाना, 5 -स्टार होटल में रुकना।अंजाने में ही सही लेकिन रॉय ने वो सब हासिल किया जो यह कहने पर मजबूर कर दे कि कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता।

रॉय के अचीवमेंट्स में  Photo Exhibition (स्ट्रीट- ड्रीम्स ), वर्ल्ड वाइड कम्पटीशन 2008  के  विजेता बनकर ICP में फोटोग्राफी की पढाई , WTC का शूट, ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग अवार्ड से नवाज़ा जाना, प्रिंस एडवर्ड के साथ बकिंघॅम पैलेस में लंच, “होम स्ट्रीट होम” उनकी पहली  फोटोग्राफी बुक शामिल हैं।

रॉय ने अपने दोस्त के साथ मिलकर 2011 में एक फोटो लाइब्रेरी खोली जहां फोटोग्राफी बुक्स फ्री में उपलब्ध करवाई जाती है।

ज़मीन से जुड़े, अपने कल के एहसास को ज़िंदा रखे हुए, आंखों में ना रुकने वाले वो सपने, हालातों को अपने सामने झुका कर, परिश्रम नाम की उस चाबी से उसने अपनी किस्मत के दरवाज़े खोले और आज एक 27 साल के  विक्की रॉय  विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर का खिताब अपने नाम कर चुके हैं।

“जो मुझे अपने घर में टीवी देखने से भगा देते थे, आज मुझे टीवी पर देखते हैं”

एक झोपड़ पट्टी में रहने वाला इंसान, अगर बॉलीवुड का प्रसिद्ध अभिनेता बन जाए तो आप भी सोचेंगे कि आखिर ऐसा हुआ कैसे। विपिन शर्मा एक प्रख्यात बॉलीवुड अभिनेता हैं, जिन्होंने 2007 में ‘तारे ज़मीन पर’ फिल्म में नंदकिशोर अवस्थी का किरदार निभाया था।

विपिन शर्मा की की प्रेरक कहानी आप इस वीडियो में देख सकते हैं।

 

हर इंसान जो बॉलीवुड में हो ज़रूरी नहीं कि उसकी ज़िंदगी हमेशा बहुत शौहरत वाली रही हो। विपिन की ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही थी, दिल्ली की उन गलियों में बसी बस्तियों में रहने वाला इंसान, जहां न घरों में बिजली होती थी और ना टीवी, लेकिन फिर भी विपिन अपनी मंज़िल को पाने के लिए उस ज़िंदगी को रूकावट नहीं मानते थे। उनके जीवन में गरीबी थी, कोई सुनहरे अवसर भी नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने रास्ते खुद निकाले और कोशिशें करते रहे।

उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा कि कोई आएगा और मौका देगा, पढ़ाई करते रहे और अवसर प्राप्त होते ही वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा ) के छात्र बन गए। दिल्ली के बहुत से थिएटर में काम सीखा, यहां तक की कैनेडियन फिल्म सेंटर में भी सीखने के लिए गए। हिंदी सिनेमा में काम करने की चाह लेकर लौटे विपिन को कोई भी मौका नहीं दे रहा था, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और ऑडिशंस देते रहे।

एक दिन आमिर खान ने उनके ऑडिशन वीडियो को देखा और उन्हें तारे ज़मीन पर फिल्म में मुख्य किरदार ‘इशान अवस्थी’ के पिता का किरदार दे दिया। उन्हें यह किरदार मिलना उनके निरंतर प्रयास, और कठिन परिश्रम का नतीजा था। आज विपिन ‘तारे ज़मीन पर’, ‘सत्याग्रह’ और ‘रांझणा’ जैसी बहुत सी बॉलीवुड हिट्स में अभिनय कर चुके हैं।

 

5 भारतीय हास्य कलाकार जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए!

एक ऐसी कला के कलाकार जो आपको इस व्यस्त ज़िन्दगी में कुछ हंसी के पल दे सकते हैं। हमने 5 ऐसे कॉमेडियन के नाम एकत्रित करें हैं, जो आपको खुल के हंसने पर मजबूर कर देंगे। जानें इनके बारे में –

1-चिरायु मिस्त्री

इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद, चिरायु यही ढूंढ़ते रहते

थे कि आखिर इस सब से हासिल क्या? और फिर 20 साल की उम्र

में  उन्होंने खुद की कला को पहचाना और कॉमेडी की दुनिया में आ

गए। आज चिरायु मिस्त्री अच्छे हास्य कलाकारों में अपना नाम

अंकित कर चुके हैं और बहुत से हास्य लेख भी लिखते हैं। 

   

2 –मनीष त्यागी

   

   कमांडर मनीष त्यागी नौसेना से रिटायर्ड होने के बाद भी खाली नहीं

   बैठे, उन्होंने अपने अंदर की कला, जिससे वे लोगों को हँसा सकते थे।

   उस कला को अपना जुनून बनाया और आज वे एक प्रख्यात स्टैंड-अप

   कॉमेडियन बन चुके हैं।

   

3-आकाश मेहता

अपनी ज़िन्दगी को श्रेष्ठ तरीके से जीने वाले आकाश मेहता हास्य

कला को अपना व्यवसाय मानते हैं। उनकी इसी कला से वे लोगों के

चहिते बन चुके हैं और पिछले सात साल से लोगों को स्टेज पर

आकर हंसाते हैं और हंस कर जीना सिखाते हैं।

 

4-राहुल दुआ

  पंजाब में जन्मे राहुल दुआ एक बेहतरीन स्टैंड-अप हास्य कलाकार

  होने के साथ NDTV के राइजिंग स्टार ऑफ़ कॉमेडी 2016 के

  विजेता भी हैं। राहुल अपनी इस हास्य कला के कारण संपूर्ण देश में

  प्रख्यात हैं।

   

5-अदिति मित्तल

 देश के हास्य कलाकारों के बीच कुछ ही नाम औरतों के हैं, उन्हीं में

 से एक प्रसिद्ध महिला हास्य कलाकार हैं अदिति मित्तल। सात साल

 पहले मुंबई के एक कॉमेडी शो का हिस्सा बनीं । और आज इनके शो

 के Videos Netflix  पर भी उपलब्ध हैं। 370 हज़ार Twitter

फॉलोवर्स के साथ अदिति आज लोगों के दिलों में अपनी कला के

ज़रिये जगह बना चुकी हैं।

 

समाज में HIV/AIDS की जागरूकता फैला रही है यह १४ वर्षीय नंदिनी कुच्छल !

14 साल की लड़की नंदिनी कुच्छल जिसने समाज की एक विकट समस्या का समाधान करने का निर्णय लिया। वह समस्या जिसे हम HIV और AIDS के नाम से जानते हैं। इन दो बीमारियों का नाम सुनते ही आपके दिमाग में यही आता है कि HIV पीड़ित को स्पर्श कर लिया, या फिर उनका झूठा खा लिया तो यह बीमारी आपको भी लग जाएगी। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होता, HIV एक आनुवंशिक बीमारी है नाकि कोई छुआछूत की बीमारी। इस बात को हमारे समाज के बड़े-बड़े नहीं समझते लेकिन इस 14 वर्ष की लड़की ने समझा और इस सोच को बदलकर HIV पीड़ितों को आम जीवन प्रदान करने के लिए फाइट रेड नाम का मिशन भी शुरू कर दिया। यह संस्था HIV पीड़ितों की देख-रेख करता है, उन्हें शिक्षा दिलाता है और कोशिश करता है कि वो एक आम जीवन बिता सकें बिलकुल आपके और हमारी तरह।

इस युवा लड़की की प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

“रेज़- आशा की एक किरन” नाम का NGO जो की जयपुर के HIV और एड्स पीड़ितों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। इस NGO की एक संस्थापक नंदिनी की दादी रश्मि कुच्छल भी हैं। 8 वर्ष की आयु से ही नंदिनी ने HIV/AIDS के बच्चों को बहुत नजदीक से देखा है और वे उनके लिए कुछ करना चाहती थीं।

अपनी दादी के नक्शेकदम पर चलते हुए, 14 वर्ष की नंदिनी ने अपना ही एक मिशन शुरू किया HIV और AIDS पीड़ितों के लिए जिसका नाम FIGHT RED है।

HIV/AIDS के प्रति समाज की रूढ़िवादी सोच और उन पीड़ितों के साथ किए गए भेदभाव के खिलाफ इस युवा ने यह अभियान शुरू किया। नंदिनी ने फाइट रेड की शुरुवात लोगों से पैसे इक्कठे करके करी, उन्होंने पीड़ितों के लिए 3 लाख से भी ज़्यादा रूपए जुटाए।  हाल ही में, प्रतिष्ठित अशोका फाउंडेशन द्वारा नंदिनी को राजस्थान की पहली युवा वेंचरर के शीर्षक से सम्मानित किया गया।

फाइट रेड ने अब तक बहुत से स्कूलों में  वर्कशॉप्स करवाई हैं और एक वर्कशॉप ट्रक ड्राइवर्स के साथ भी करी है क्योंकी इनके मध्य यह बीमारी सबसे अधिक होने का डर होता है। नंदिनी एक राष्ट्रीय स्तर की स्क्वैश खिलाड़ी हैं और बाकी बच्चों की तरह वे भी सोशल मीडिया को समय देती हैं लेकिन उनका कहना है कि –“प्रत्येक युवा को HIV/AIDS से संभंधित जागरूकता समाज में फैलानी चाहिए”

 

राजस्थान का वो गांव जो हर बेटी के जन्म पर लगाता है 111 पेड़

राजस्थान का पिपलांत्री गांव लड़की बचाओ और हरयाली बढ़ाओ का अपना ही एक नया सिद्धांत बनाकर संपूर्ण देश में एक नई मिसाल कायम कर रहा है।

अखबार में अक्सर ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि किसी लड़की का बलात्कार हुआ, तो कहीं यौन शोषण किया गया या फिर किसी लड़की या महिला की हत्या कर दी गई। लेकिन पिपलांत्री गांव के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ने इस गांव का रुख ही बदल दिया। अपनी बेटी किरन की याद में श्याम सुंदर ने यह रीत चलाई कि, जब भी किसी लड़की का जन्म पिपलांत्री गांव में होगा, तो उसके नाम पर 111 पेड़ लगाए जाएंगे। वे सिर्फ पेड़ ही नहीं लगाते बल्कि इसका भी खास खयाल रखते हैं कि ये सारे पेड़ ज़िंदा भी रहें। पिछले 6 सालों में इस गांव ने नीम, शीशम, आम और आमला के लगभग 30 लाख से अधिक पेड़ लगाए हैं।

इस गांव की और यहां के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की अदभुत कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

एक ऐसा देश जहां हर दिन करीब

होती हैं और न जाने कितने ही पेड़ काट दिए जाते हैं। ऐसे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान के पिपलांत्री गांव के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल ऐसे ही लोगों में से एक हैं। उन्होंने एक गांव में ही सही लेकिन अनेकों कन्याओं को इस दुनिया में जन्म लेने दिया और उनके आने की ख़ुशी में 111 पेड़ भी लगवाना शुरू किया।

कुछ ही वर्ष पहले अपनी बेटी खो देने के बाद श्याम सुंदर ने अपने गांव में हर वर्ष लगभग 60 लड़कियों के जन्म लेने पर पेड़ लगाने की प्रथा शुरू करवाई। इस गांव में प्रत्येक लड़की के लिए गांव से 21,000 और लड़की के पिता से 10,000 रुपये लेकर, कुल 31,000 रुपये का फिक्स डिपाज़िट कराया जाता है। इतना ही नहीं लड़की के माता-पिता को सरकारी कागज़ों पर हस्ताक्षर भी करने होने होते हैं, जिन पर साफ़ लिखा होता है कि लड़की रोज़ स्कूल जाएगी, उसकी शादी कानूनी उम्र से पहले नहीं होगी और सारे पेड़ों का ध्यान उसके परिवार को ही रखना होगा।

संपूर्ण देश के लिए यह गांव और इसके सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल एक मिसाल हैं, जो एक ऐसा काम कर रहे हैं जिससे भ्रूण हत्या तो कम होंगी ही साथ ही देश में हरयाली भी होगी। श्याम सुंदर के इस अनूठे प्रयास से सीख लेकर संपूर्ण देश के लोगों को देश के बेहतर कल के लिए आगे आना चाहिए।