7 साल की उम्र में हुई यौन शोषण की शिकार, आज बनीं एक विश्वप्रसिद्ध योगिनी और नर्तकी

ज़िन्दगी में ऐसा कितनी ही बार होता है जब हम सारी उम्मीदें हार चुके होते हैं। अभी आप भी गिनोगे तो हज़ारों ऐसी बातें होगी जिनके कारण हम अपनी ज़िन्दगी, समस्याएं और परिस्थितयों को कोसने लग जाते हैं। चारों तरफ बस नकारात्मकता ही होती है और हमारी काम करने की, खुश रहने की क्षमता ख़त्म होने लगती है। इनका समाधान है योगा । इन सब की वजह से नौकरी हो या निजी ज़िन्दगी की समस्याएं, आप सबसे सही तरीके से सौदा कर ही नहीं पाते हैं। इन सब का क्या हल है ? यहाँ हम सिर्फ बातों के ज़रिए आपको इन सब से लड़ने के तरीके नहीं बातएंगे। आप के सामने उदाहरण स्वरुप हैं नताशा नोएल एक ऐसी लड़की जिसने हज़ारों मुश्किलें सहीं, जिसका रेप हुआ, कितने ही दिनों तक डिप्रेस रही और आज एक विश्व प्रसिद्द योगिनी, फिटनेस ट्रेनर और नर्तकी हैं।

नताशा का कहना है कि “योग मेरे लिए आज़ादी है, मुक्ति है, खुद को समझने का तरीका है, खुद को ढूंढ़ने का, मुश्किलों में शांत रहना का ज़रिया है । सारी मुश्किल से मुश्किल और घिनौनी स्थितियों में खुद को स्थिर रखने का तरीका है योग। अपने अंतर्मन को समझना, सारे नकारत्मक खलायों को मिटाना है तो योग से अच्छा और कुछ नहीं है।” यदि आप भी अपनी परेशानी से मुक्त होना चाहते हैं और खुद को मानसिक एवं शारीरिक सुख देना चाहते हैं तो योग अपनाएं।

नताशा की ज़िन्दगी में बचपन से ही ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसके कारण वे बहुत नकारत्मक हो गई थी। फिर उन्होंने खुद को उस सब से दूर रखने के लिए नृत्य शुरू किया। उन्होंने पांच साल तक बहुत सी डांस फॉर्म्स सीखी और डांस के ज़रिये उन्हें एहसास हुआ कि वो कितनी खूबसूरत हैं। लेकिन फिर एक एक्सीडेंट के कारण उन्हें डांस छोड़ना पड़ा। 1 साल तक बिना कोई नृत्य करे रहीं और उसके बाद उन्होंने योग करना शुरू किया और आज वे योग ट्रेनर हैं। योग के ज़रिए खुद को पा कर, उन्होंने अपनी मन की शान्ति और विचारों की आज़ादी पाई। आज नताशा हज़ारों-लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं।

क्या आप अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं?

इंसान के निर्णय सदैव ही उसकी प्रत्येक ज़रूरत या फिर सुविधा अनुसार ही लिए जाते हैं। अनेकों बार लोग 2 चीज़ों के बीच फस भी जाते हैं। इस स्थिति में ज़्यादातर लोग अपने निर्णय खुद लेने में असमर्थ होते हैं और किसी दूसरे पर आश्रित हो जाते हैं। वहीँ देखा जाए तो एक सफल और सक्षम व्यक्ति वही होता है जो अपने निर्णय किसी दुविधा में फसे बिना स्वयं ले सके। इस बात में फसे रहना कि यह हमारे लिए सुविधाजनक है या नहीं, हम यह सोचकर अपने सुविधा क्षेत्र से निकलना ही नहीं चाहते। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे उचित निर्णय लिए जाएं और उनका क्या महत्तव है।

कैसे लाएं विचारों में स्पष्टता?

किसी भी विषय पर निर्णय लेते समय या किन्हीं दो बातों के बीच चुनाव करते समय हमारे विचारों कि स्पष्टता अति आवश्यक होती है। यदि हमारे दिमाग में सही तर्क नहीं होंगे तो हम निर्णय ले ही नहीं सकते हैं। इसीलिए हमें निर्णय लेते वक़्त दोनों विकल्पों के बारे में तर्क सहित विचार करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या उचित है। दस लोगों से बात करने की वजह केवल कुछ विशेषज्ञों से ही राय लें। जितना हो सके उतना चीज़ों का गहराई से पता लगाएं और फिर निर्णय लें।

आप क्या चाहते हैं ?

खुद से यह प्रश्न पूछिए कि आप क्या चाहते हैं। बहुत सी बार ऐसा होता है कि हम कोई ऐसा कार्य या नौकरी करने में जीवन बिता देते हैं जो हम करना ही नहीं चाहते। उस कार्य को करने से ना तो हमारा कोई व्यक्तिगत विकास होता है और नाहीं कार्य क्षेत्र में कोई तरक़्क़ी मिलती है। हम काम बस इसलिए कर रहे होते हैं क्योंकि हमें वेतन मिल रही होती है और कुछ नहीं। असल में देखा जाए तो हम खुद खर्च हो रहे होते हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि आप खुद से सवाल पूछें कि आखिर आप क्या चाहते हैं और फिर किसी विषय पर निर्णय लें।

जोखिम उठाने से ना डरें !

यह आवश्यक नहीं की आपका हर फैसला सही ही हो। इन्सान जन्म से ही सब कुछ सीख कर नहीं आता। गल्तियां करता है और फिर उसके काम में पूर्णता आती है। अपनी सोच और समझ के साथ ही निर्णय लें, लेकिन इतना भी ना सोचें कि आप दुविधा में फस जाएं। जो आपका दिल कहे और दिमाग कहे हाँ सही है, बस उसे चुनें और फिर गलत भी निकलता है तो कोई नहीं गल्तियों से ही सीख मिलती है। दृढ़ता के साथ निर्णेय लेने की आदत डालें और उसपर अमल करें, इससे आपको आत्मविश्वास भी मिलेगा और निर्णय लेने में आसानी होगी।

दृष्टिकोण में परिवर्तन होगा तभी यह समाज बदलेगा।

दृष्टिकोण यानी आपके और हमारे नज़रिए का परिवर्तन ही सबसे बड़ा परिवर्तन है। अपनी सीमा के संकीर्ण दायरे को बढ़ाकर विशाल क्षेत्र तक विकसित करने का नाम ही विकास है। लेकिन क्या हमारे देश का समाज वास्तविकता में विकास कर रहा है? इस सवाल का जवाब है नहीं। केवल इकोनॉमिक स्तर पर तरक़्क़ी कर लेने से देश की सोच व मनुष्य का विकास नहीं होता है।

क्या है इस समाज की सोच?
समाज में घटित होती आ रहीं बहुत सी घटनाएं जो हमारे समाज का मानसिक स्तर साफ़ तौर पर दर्शाती हैं। यौन-शोषण, धर्म विभाजन, कचड़ा साफ़ करना हमारा काम नहीं है, लड़का-लड़की साथ घूम रहे हैं तो कुछ गड़बड़ ही है, लड़की के साथ छेड़-छाड़ हुई तो कारण उसके कपड़े होंगे, लव मैरिज तो पाप है और पता नहीं क्या-क्या, इस समाज के लोगों की छोटी सोच ही है जिसके कारण देश विकास कर ही नहीं पा रहा है। इस को बदलने के लिए आंदोलन नहीं बल्कि लोगों के दिमाग के दरवाज़े खोलने की ज़रूरत है। छोटी सोच अज्ञानता के कारण ही होती है, यदि लोग पढ़े-लिखे होंगे तो वो नई चीज़ों से अवगत होंगे और बढ़ती सोच के साथ खुद भी नया वक़्त अपना पाएंगे।

क्या है देश के मीडिया की जिम्मेदारी?
एक जगह से दूसरी जगह लोगों तक हर प्रकार की बात मीडिया द्वारा ही पहुँचती है। वहीँ हाल में ही हुए आसिफा रेप केस को मीडिया ने धर्म का मुद्दा बनाकर दिखा दिया, जो की सरासर गलत था । यौन शोषण होना किसी धर्म का कारण बिल्कुल भी नहीं है। इस मुद्दे को लेकर देश के कानून पर सवाल उठाए जा सकते थे, लोगों को जागरूक किया जा सकता था लेकिन मीडिया ने तो केवल हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर ही ध्यान दिया। भारत देश के कानून के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना इस मीडिया का ही काम है। हमारी ज़िम्मेदारी भी बराबर की है कि हम कोई भी गलत काम न होने दें और नाही खुद से करें।

कैसे बदलेगा समाज?
बेटे और बेटी दोनों को ही सामान अवसर दो। लड़के-लड़कियों से अधिक मजबूत हैं यह टिप्पणी करना बंद करो। दोष कपड़ो में नहीं लोगों की नज़रों में है यह बात मान लो। अपने आस-पास की सफाई तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है और ऐसा करने से तुम छोटे नहीं हो जाओगे। घर बनाने के लिए पेड़ काट रहे हो तो उन्हें लगाना मत भूलना। बदलाव की शुरुवात तुम्हारे ही घर से और तुमसे ही होगी तो आज ही फैसला करो ऐसा ही भारत चाहिए या सच में विकास करना चाहते हो।

अपेक्षाओं से मुक्त होकर आशावादी बनो!

इंसान को कोई और नहीं बल्कि उसकी अपेक्षाएं जिन्हें हम अंग्रेजी में expectations कहते हैं वही धोका दे जाती हैं। अपेक्षाएं पूरी ना हों तो हर किसी को दुःख का आभास होना स्वाभिविक है। उम्र कुछ भी हो अपेक्षाएं सभी को होती ही हैं। बच्चों को परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की, युवाओं को अच्छी नौकरियां चाहिए, माँ – बाप अपनी संतानों के ज़रिए अपने ख्वाब पूरा करना चाहते हैं। लेकिन कभी यह सोचा है कि इन अपेक्षाओं का हमारे जीवन पर कितना प्रभाव पड़ता है। अपेक्षाएं प्रत्येक परिस्तिथि में कष्ट का ही निमित्त बनती है , इसलिए हमें किसी भी व्यक्ति से व परिस्थिति में अपेक्षाएं नहीं केवल आशाएं रखनी चाहिए।

अपेक्षाएं असल में होती क्या हैं?
अपेक्षाएं एक प्रकार से हमारी उम्मीदें होती हैं जो भविष्य से जुडी होती हैं। स्वयं को साबित करने के लिए कुछ कर दिखाने की उम्मीदें या फिर लोगों की हमसे जुड़ीं अपेक्षाएं। अपेक्षाएं पूरी हो जाएं तो सुख देती हैं लेकिन पूरी होने तक तनाव होना निश्चित ही है। अक्सर इन अपेक्षाओं के कारण ही ना जाने कितने लोग चिंताग्रस्त और दुखी हो जाते हैं। अपेक्षाएं सदैव इच्छाओं और आकांक्षाओं को जन्म देती हैं। इच्छा कहती है इस स्तिथि में ऐसा होना चाहिए था यथा इस प्राणी को ऐसा नहीं वैसा व्यवहार करना चाहिए था, किन्तु जब परिणाम हमारे अनुसार नहीं होता तो दुःख होता है।

कैसे हो सकते हैं अपेक्षा से मुक्त ?
आशा शब्द से हम सभी परिचित हैं। अपेक्षा और आशा दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अपेक्षा हमें इस ज़िद्द पर उतार देती है कि जो हमने सोचा है या सपना देखा है वो पूरा होना ही चाहिए नहीं तो हम टूट जाएंगे। वहीँ दूसरी ओर होती ही आशाएं जो हमें यह नहीं कहती कि यह काम नहीं हुआ तो जीवन खत्म किन्तु आशा प्रकाश की भांति , किरणों की भाँती है और इसलिए एक आशावान व्यक्ति कभी भी किसी भी परिस्तिथि में निराश नहीं होता, उसे सदैव कुछ अच्छा होने की आशा रहती है और आशा की यह स्वतंत्रता दुःख सहने का बल प्रदान करती है। यदि परिणाम अपेक्षा के अनुकूल न हो तो उसे स्वीकार करने का साहस भी प्रदान करती है।

उम्मीदें रखो लेकिन पूरी न होने पर टूटना मत!
हमने इस पूरे लेख के दौरान इसी बात पर चर्चा करी कि उम्मीदें होनी चाहिए लेकिन साथ में आशावादी होना अनिवार्य है ताकि हम बिखरे नहीं बल्कि दुबारा कोशिश करने के लिए सक्षम बनें। जिस प्रकार एक माता-पिता अपने बच्चों से पढ़-लिखकर कुछ अच्छा बनने की उम्मीद रखते हैं, वह उचित है किन्तु उसके साथ माता-पिता को खुद भी आशा रखनी चाहिए और अपने बच्चों का हौसला भी बढ़ाना चाहिए ताकि ना वे निराश हों और नाही उनके बच्चें।
प्रत्येक समय कुछ अच्छा होगा ही यह दिमाग में हमेशा रखना ही चाहिए क्योंकि बुरा सोचने से कौनसा कुछ अच्छा हो ही जाता है।

Tension Free रहोगे तो ज़िन्दगी आसान होगी!

खुश रहने का मतलब यह नहीं होता कि आपके जीवन में कोई दुःख है ही नहीं बल्कि उसका मतलब यह है कि आप अपनी परेशानियों और दुःख से उठकर जीने की हिम्मत रखते हैं।
Tension हम सभी की ज़िन्दगी का वो शब्द है जिससे हम दिन में ना जाने कितनी ही बार गुज़रते हैं। देखा जाए तो ज़्यादातर लोग उतने ही खुश रहते हैं, जितना वो अपने दिमाग में तय कर लेते हैं। यदि हम इससे थोड़ा ज़्यादा करें, थोड़ा और खुश रहने की कोशिश करें तो क्या पता ज़िन्दगी और आसान एवं बेहतर हो जाए। एक बार आज़माने में क्या जाता है।

हँसने – मुस्कुराने की आदत डाल लो।

ज़िन्दगी में एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि हमें हँसने-मुस्कुराने की आदत डाल लेनी चाहिए।
हँसते हुए चेहरे में कभी तनाव नहीं होता और हँसते-मुस्कुराते हुए कार्य करने से हमारी कार्य करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। चिकित्सकों के अनुसार – हँसना मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा प्राकृतिक पोषण है। इसी कारण डॉक्टर अक्सर यही सलाह देते हैं कि खुश रहिए और मुस्कुराते रहिए तो ज़िन्दगी सरल होगी।
जोश Talks स्पीकर विपिन शर्मा ने कहा- “एक मुस्कराहट सौ मुश्किलों को हरा देती है।”

सफलता में रुकावट होती है Tension!

एक आम जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति क्यों हमेशा खुश रहता है और हम जो सफलता के पीछे भागते हैं उन्हें हज़ारों बातों का तनाव होता है। जवाब यह है कि वो आम व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुसार सफल हो चुका होता है किन्तु हम सभी सफलता प्राप्त करने की दौड़ में खुद को खुश रखना भूल जाते हैं और हमारे पास बचता है तो बस तनाव। अब यदि तनाव लेकर बैठेंगे तो हम कैसे अपनी रचनात्मक कला का इस्तेमाल करके सफलता पा सकेंगे। कुछ अच्छा करने के लिए एक खुश मन का होना बेहद आवश्यक है। तो आज से ही अपना काम चेहरे पर मुस्कान के साथ करिए।
जोश Talks स्पीकर कुसुम तोमर ने कहा- “जब तक सांस है, तब तक हंस कर लड़ो।”

कैसे रहे तनाव मुक्त?

अब हमने ऊपर यही पड़ा की टेंशन ना लेने से क्या होता है लेकिन टेंशन फ्री कैसे रहें?
इस सवाल का जवाब बिल्कुल आसान है और इसका जवाब हमारे पास ही होता है क्योंकि टेंशन तभी आती है जब हम अपने काम को समय पर पूर्ण करने में असफल होते हैं। ऐसा क्यों होता है जब हम अपना समय इधर- उधर की बातों में बर्वाद करते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है कि तनाव होगा ही। इसका एक मात्र उपाय है कि आप अपने निशदिन किए जाने वाले काम में दिए जाने वाले समय का उचित विभाजन करें। कोनसा कार्य कितना ज़रूरी है उस अनुसार काम को ख़तम करें और अंतिम समय के लिए कुछ भी शेष ना रखें, प्रत्येक कार्य की प्राथमिकता निश्चित करना आपकी ज़िम्मेदारी है ताकि कोई अनावश्यक कार्य सिर पर ना आए। सदैव कोशिश यही रहनी चाहिए की इन बातों को आदत में लाया जाए साथ ही दिमाग में यह बिठा लिया जाए कि Tension लेने से कोई भी कार्य या समस्या का हल प्राप्त नहीं होता है।
जोश Talks स्पीकर श्याम पालीवाल ने कहा – “आज का काम आज ही करो, कल पर मत छोड़ो।”