“औरतों के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाओ”- डॉ. दिव्या गुप्ता

रेप, बलात्कार, छेड़छाड़ ये सारे शब्द सुनते ही आप सभी को क्रोध आता होगा। हम सभी को घृणा होती है, निराशा होती है, गुस्सा भी आता है, लेकिन क्या हम इन सब को महसूस करने के अलावा कुछ और करते हैं। जवाब होगा हाँ, क्योंकि आपको लगता है कि सड़कों पर नारे लगाना, रैलियां निकालना, कैंडल मार्च करना यह सब इन समस्याओं का हल है। आप बिलकुल गलत सोचते हैं, इन सब को रोकने के लिए असल में क्या करना चाहिए, इसका उदाहरण हैं इंदौर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. दिव्या गुप्ता। डॉ. दिव्या ने अपनी निराशा और क्रोध को ऐसे ही शांत नहीं होने दिया। उन्होंने इन सब घटनाओं से औरतों, लड़कियों को बचाने का अभियान शुरू किया।

इनकी प्रेरणादायक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

डॉ. दिव्या ने जस्टिस फॉर ज्वाला नाम के संस्थान को जन्म दिया, जो पीड़ित स्त्रियों के न्याय के लिए काम करता है, उन्हें खुद की आत्मरक्षा करना सिखाता है और उनके अधिकारों से अवगत कराता है। इतना ही नहीं यह संस्थान महिलाओं को शिक्षित करके उन्हें रोजगार भी दिलाता है।

ज्वाला के कुछ ऐसे किस्से हैं जहाँ  उन्होंने साबित किया है कि वे औरतों को इन्साफ दिला रहे हैं । रमीला नाम की एक औरत जिसका पति उस पर रोज़ ही अत्याचार करता था, लेकिन पुलिस ने उसकी FIR दर्ज नहीं करी और फिर ज्वाला ने रमीला के पति को जेल की सजा दिलाई और आज रमीला ज्वाला का एक हिस्सा हैं।  इसके अलावा ज्वाला ने एक 32  वर्षीय महिला सविता की मदद की, जिसका पति उसे पीटा करता था और मारने की धमकी दिया करता था। ज्वाला की टीम ने सविता को आवश्यक कानूनी सहायता, शिक्षा और परामर्श दिया। वह अब कॉलेज में एक शिक्षक हैं और स्वतंत्र रूप से अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं।

यह एक थप्पड़ है समाज के उस हर व्यक्ति पर जो बस तमाशा देखना जानता है।

जस्टिस फॉर ज्वाला के पीछे डॉ. दिव्या का मुख्य उद्देश्य कमजोर महिलाओं को अधिक सशक्त और आत्मविश्वासी बनाना है। ज्वाला की टीम में कुछ प्रशिक्षित पेशेवर हैं जो लड़कियों को आत्मरक्षा के तरीके सिखाते हैं। ज्वाला ने अब तक 75,000 से ज़्यादा  लड़कियों को प्रशिक्षित किया है और आगे भी करता रहेगा।

डॉ. दिव्या का दुर्व्यवहार करने वालों के लिए केवल एक सन्देश है- “जिस क्षण आप हमें छूते हैं, हम एक ज्वाला बन कर आपको जला देंगे।”

हिम्मत के साथ पोलियो से लड़कर बने राजिंदर रहेलु नेशनल लेवल वेट लिफ्टर !

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं जो पोलियो होने के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे खेल में भाग ले जहां अत्यधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है? राजिंदर सिंह रहेलु इस सवाल का जवाब हैं।

इंडियन पैरा ओलम्पिक पॉवरलिफ्टर रहेलु का जन्म 22 जुलाई 1973 को पंजाब के जलंधर ज़िले के मेहसमपुर गांव के एक नुक्ता कश्यप राजपूत परिवार में हुआ था। छोटे से परिवार में हुए इनके जन्म की खूब खुशियां मनाई गई, लेकिन 8 महीने के बाद इनकी माँ को इनके पोलियोग्रस्त होने का पता चला। एक ऐसी बीमारी जिसका पता चलने के बाद सारे परिवार में मायूसी छा गई।

इसके बाद लोगों ने उनके परिवार को सहानुभूति देना शुरू कर दिया, वहीं कुछ लोग यह भी कहने लगे, “ऐसी ज़िन्दगी होने से अच्छा तो ना होना है।” लोगों के इन शब्दों के जवाब में रहेलु आज एक अर्जुन अवार्डी हैं, जो उन्हे डॉ. कलाम  द्वारा प्राप्त हुआ। इनकी यह कहानी इस वीडियो में देखें-

 

रहेलु का कहना है कि उनके परिवार का साथ और साहस, उनकी हिम्मत बना। पॉजिटिव थिंकिंग, आगे बढ़ते रहना, पीछे मुड़ के तो देखना ही नहीं है, ऐसी बातों ने रहेलु को इतना तो बता ही दिया था कि शारीरिक विकलांगता यानी फिजिकल डिसेबिलिटी उनके जीवन में बाधा नहीं है।

इस एहसास और उनके माता-पिता की हिम्मत के साथ उन्होंने 1996 में सुरेंद्र सिंह राणा से वेट लिफ्टिंग सीखनी शुरू की और उन्हें काफी सराहना मिली। इसी सराहना से मिले जोश से रहेलु ने कोच पवन गोनेल्ला के साथ मिलकर पंजाब के लिए गोल्ड जीता और एशियन बेंच प्रेस चैंपियनशिप दिल्ली में पहला अटेम्प्ट दिया। 1998 में वो नेशनल पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप के विजेता बने, एथेंस (ग्रीस) में 2004 समर पैरा ओलम्पिक्स में 56 किलोग्राम श्रेणी में भाग लिया, 157.5 किलो वजन का भार उठाने के बाद उन्होंने अंतिम स्टैंडिंग में चौथा स्थान हासिल किया। 2006 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया और 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में वह सिल्वर विजेता रहे। इस तरह उनकी उपलब्धियों का सिलसिला बढ़ता रहा।

इस सफर के दौरान उन्होंने अनेकों कठनाइयों का सामना किया, जहां उन्हें आने-जाने में दिक्कतें आई लेकिन उन्होंने उस समस्या का हल ढूंढा और एक सस्ती सी व्हील चेयर अपने लिए बनवाई। उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उनका मानना है, “कोई  भी परिस्थिति आपको रोक नहीं सकती।”  रहेलु आज ‘पंजाब सोशल आर्गेनाइजेशन’ का हिस्सा हैं और ‘पैरा स्पोर्ट्स एकैडमी पंजाब’ में वेट लिफ्टिंग कोच भी हैं।

“पैसे से ज़्यादा हिम्मत के दो शब्द इंसान को कहां पहुंचा सकते हैं”, इसका उदाहरण रहेलु खुद हैं। एक गरीब  परिवार का विकलांग बालक आज इंडियन पैरालिम्पिक पॉवरलिफ्टर है।

 

बचपन से ही अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी बालिका-वधु की सुगना!

बालिका वधु जैसे प्रसिद्ध टीवी सीरियल में सुगना का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री का असल नाम विभा आनंद है। देहरादून के एक छोटे से गांव की विभा के सपने हमेशा से बहुत बड़े थे। भले ही गांव में रहते समय वे तेल लगे बालों में 2 चोटियां बना कर रहती थी, ज़्यादा खूबसूरत नहीं दिखती थीं लेकिन उन्हें इस बात का आभास हमेशा से था की वो एक अभिनेत्री ही बनेंगी। हालांकि मुंबई जैसा शहर और टीवी की ये दूर से रंगीन दिखने वाली दुनिया परदे के पीछे ऐसी नहीं होती। कढ़ी मेहनत, लगन और दृढ निश्चय ही आपको यहाँ आपकी पहचान दिलाता है। विभा ने भी मुंबई में खूब संघर्ष किया और आज वे बालिका वधु, कैसी ये यारियां और महाभारत जैसे कई प्रसिद्ध टीवी शो में काम कर चुकी हैं।

इनकी प्रेरणादायक कहानी इन्हीं की ज़ुबानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

विभा आनंद देहरादून के एक छोटे से गांव में जन्मीं और वहीं उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण करी। खुद को एक अभिनेत्री की तरह देखने वाली विभा अपने पिता के साथ मुंबई आ पहुंची। उन्होंने अनेकों ऑडिशंस दिए, और रिजेक्ट भी हुईं। कितनी ही बार री-टेक्स लिए, उनका मज़ाक भी बना करता था पर वे कभी-भी हताश नहीं हुई और अलग-अलग सेट्स पर जाकर प्रयास करती रहीं। फिर एक दिन उन्हें बालिका वधु के सेट से कॉल आई कि उन्हें सुगना के किरदार के लिए चुन लिया है।

यह उनकी उड़ान की शुरुवात थी, सिलसिला चलता रहा और आज वे कामयाब हुई। विभा इतने में रुकी नहीं, बालिका वधु के बाद उनकी पहचान सुगना जैसी हो गई थी, रोने वाली परेशां महिला जैसी, इसलिए उन्होंने निश्चित किया कि वे कुछ अलग किरदारों में आकर अपनी अलग छवि बनाना चाहती थीं। उन्होंने यह भी कर दिखाया कुछ साल बिना काम के रहीं लेकिन आज वे MTV के शो कैसी ये यारीआं में अभिनय कर रहीं हैं।
विभा का कहना है-
“शहर छोटा हुआ तो क्या हुआ,
मेरे सपने बड़े थे,
मौके कम थे तो क्या हुआ,
मेरी उमीदें बढ़ी थी,
रास्ते में आने वाली वो दिक्कते अनेक थीं,
लेकिन उनसे लड़ने की हिम्मत मुझमें कई ज़्यादा थी।”

This Fierce Fashion Designer Turned Asst. Police Commissioner Is On A Unique Mission

Never quite sure what she wanted to do with her life, Assistant Commissioner of Police (ACP) Manjita Vanzara spent her twenties dabbling in engineering and fashion designing. This was until she found her true calling in civil services. Her big breakthrough came when she decided to spearhead ‘Suraksha Sahay’– an initiative to improve the standard of women’s lives in the bootlegging business.

ACP Manjita’s story in the starting sounds like the story of just about any common person. But it’s the choices that she took in her life that made the difference and led her to groundbreaking success. Watch the video below as the changemaker reveals what prompted her to sit for the toughest exams in India and the driving force behind her social venture.

In the video, Manjita defends her decision to become a police officer. “If you thought that kicking down doors and nabbing robbers was the only job of cops in India, then you are wrong. We are here to listen to your problems and help in the best way possible.”

The spirited woman beams as she narrates one of her success stories based out of Chharanagar, Ahmedabad. “90% of women in that area are widows and all of them were involved in the bootlegging business. Suraksha Sahay decided to change their mindset and encourage them to do reputed work. We paid them the stipend and collaborated with some reputed brands of the city.” Today that remote region, which was once notorious for its illicit activities, shows no sign of its murky past.

Manjita’s message to all Indian parents is clear: to allow their daughters to join the police force. She also urges the youth to serve the country and set a positive example for the coming generations.

कचरा बीनने से विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर बनने तक, विक्की रॉय का सफर !

कभी प्लास्टिक की थैली मिलती थी, कभी टीन के डब्बे, फिर खाली प्लास्टिक बोतल से अच्छी कमाई हो जाती थी, कचरे बीनने से लोगों के जूठन धोने का उसका प्रमोशन, कमाई तो अच्छी करा देता था और उसमें ही उसकी खुशियां दौड़ जाती थी, पर उसकी ज़िन्दगी की सोच कंधे पर रखे उस बोरे तक सिमित नहीं थी। लोग सोते थे तो सपने आते थे पर उसकी आंखों के सपने उसे सोने ही नहीं देते थे। और ऐसी ही फैली पड़ी कतरने बीन कर विक्की के सपनों का सफर शुरू हुआ जो आज विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर हैं।

इनकी प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

यह कहानी है विक्की रॉय की। बचपन में खुद को अपनी परस्थितियों से आज़ाद करने के लिए, जेब में 1100 रूपए के साथ विक्की दिल्ली आ पहुंचा। लाखों की भीड़ में तेज़ भागते लोगों के बीच, शहर से अनजान एक मासूम, अचानक घबरा गया पर वो अकेला नहीं था, उस भीड़ में मिले उसे कुछ और बच्चे जिन्होंने उसे सलाम बालक ट्रस्ट भेजा।

सलाम बालक में रहने वाले बच्चों की ज़िन्दगी भी ताले में बंद थी इसलिए रॉय वहां से वापिस स्टेशन आ पहुंचा। कचरा बिन कर और जूठन धोकर कमाई करने से निराश हो रहा रॉय एक दिन सलाम बालक के स्वयं सेवक से मिला और फिर “अपना बालक” , सलाम बालक की ही एक ब्रांच में पढ़ाई के लिए चला गया। पढ़ाई से मुंह मोड़ कर रॉय ने ज़िन्दगी को “लेंस”  से देखने का फैसला किया और सलाम बालक पर डाक्यूमेंट्री शूट कर रहे डिक्सी बेंजामिन से फोटोग्राफी की abc सीखी।

“फोटोग्राफी खुद में ही एक भाषा है उसके लिए इंग्लिश, फ्रेंच या जर्मन आने की ज़रूरत नहीं है ” बेंजामिन के इन शब्दों ने रॉय में उसके सपनों को जीने का उत्साह भर दिया। 18 साल की उम्र में सलाम बालक से बिदाई लेकर रॉय ने अनय मान दिल्ली के फोटोग्राफर के साथ तीन साल काम किया और फिर उसके सपनों का सफर शुरू हुआ , अपने बॉस के साथ फॉरेन ट्रिप्स पर जाना, 5 -स्टार होटल में रुकना।अंजाने में ही सही लेकिन रॉय ने वो सब हासिल किया जो यह कहने पर मजबूर कर दे कि कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता।

रॉय के अचीवमेंट्स में  Photo Exhibition (स्ट्रीट- ड्रीम्स ), वर्ल्ड वाइड कम्पटीशन 2008  के  विजेता बनकर ICP में फोटोग्राफी की पढाई , WTC का शूट, ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग अवार्ड से नवाज़ा जाना, प्रिंस एडवर्ड के साथ बकिंघॅम पैलेस में लंच, “होम स्ट्रीट होम” उनकी पहली  फोटोग्राफी बुक शामिल हैं।

रॉय ने अपने दोस्त के साथ मिलकर 2011 में एक फोटो लाइब्रेरी खोली जहां फोटोग्राफी बुक्स फ्री में उपलब्ध करवाई जाती है।

ज़मीन से जुड़े, अपने कल के एहसास को ज़िंदा रखे हुए, आंखों में ना रुकने वाले वो सपने, हालातों को अपने सामने झुका कर, परिश्रम नाम की उस चाबी से उसने अपनी किस्मत के दरवाज़े खोले और आज एक 27 साल के  विक्की रॉय  विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर का खिताब अपने नाम कर चुके हैं।

“जो मुझे अपने घर में टीवी देखने से भगा देते थे, आज मुझे टीवी पर देखते हैं”

एक झोपड़ पट्टी में रहने वाला इंसान, अगर बॉलीवुड का प्रसिद्ध अभिनेता बन जाए तो आप भी सोचेंगे कि आखिर ऐसा हुआ कैसे। विपिन शर्मा एक प्रख्यात बॉलीवुड अभिनेता हैं, जिन्होंने 2007 में ‘तारे ज़मीन पर’ फिल्म में नंदकिशोर अवस्थी का किरदार निभाया था।

विपिन शर्मा की की प्रेरक कहानी आप इस वीडियो में देख सकते हैं।

 

हर इंसान जो बॉलीवुड में हो ज़रूरी नहीं कि उसकी ज़िंदगी हमेशा बहुत शौहरत वाली रही हो। विपिन की ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही थी, दिल्ली की उन गलियों में बसी बस्तियों में रहने वाला इंसान, जहां न घरों में बिजली होती थी और ना टीवी, लेकिन फिर भी विपिन अपनी मंज़िल को पाने के लिए उस ज़िंदगी को रूकावट नहीं मानते थे। उनके जीवन में गरीबी थी, कोई सुनहरे अवसर भी नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने रास्ते खुद निकाले और कोशिशें करते रहे।

उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा कि कोई आएगा और मौका देगा, पढ़ाई करते रहे और अवसर प्राप्त होते ही वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा ) के छात्र बन गए। दिल्ली के बहुत से थिएटर में काम सीखा, यहां तक की कैनेडियन फिल्म सेंटर में भी सीखने के लिए गए। हिंदी सिनेमा में काम करने की चाह लेकर लौटे विपिन को कोई भी मौका नहीं दे रहा था, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और ऑडिशंस देते रहे।

एक दिन आमिर खान ने उनके ऑडिशन वीडियो को देखा और उन्हें तारे ज़मीन पर फिल्म में मुख्य किरदार ‘इशान अवस्थी’ के पिता का किरदार दे दिया। उन्हें यह किरदार मिलना उनके निरंतर प्रयास, और कठिन परिश्रम का नतीजा था। आज विपिन ‘तारे ज़मीन पर’, ‘सत्याग्रह’ और ‘रांझणा’ जैसी बहुत सी बॉलीवुड हिट्स में अभिनय कर चुके हैं।

 

5 भारतीय हास्य कलाकार जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए!

एक ऐसी कला के कलाकार जो आपको इस व्यस्त ज़िन्दगी में कुछ हंसी के पल दे सकते हैं। हमने 5 ऐसे कॉमेडियन के नाम एकत्रित करें हैं, जो आपको खुल के हंसने पर मजबूर कर देंगे। जानें इनके बारे में –

1-चिरायु मिस्त्री

इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद, चिरायु यही ढूंढ़ते रहते

थे कि आखिर इस सब से हासिल क्या? और फिर 20 साल की उम्र

में  उन्होंने खुद की कला को पहचाना और कॉमेडी की दुनिया में आ

गए। आज चिरायु मिस्त्री अच्छे हास्य कलाकारों में अपना नाम

अंकित कर चुके हैं और बहुत से हास्य लेख भी लिखते हैं। 

   

2 –मनीष त्यागी

   

   कमांडर मनीष त्यागी नौसेना से रिटायर्ड होने के बाद भी खाली नहीं

   बैठे, उन्होंने अपने अंदर की कला, जिससे वे लोगों को हँसा सकते थे।

   उस कला को अपना जुनून बनाया और आज वे एक प्रख्यात स्टैंड-अप

   कॉमेडियन बन चुके हैं।

   

3-आकाश मेहता

अपनी ज़िन्दगी को श्रेष्ठ तरीके से जीने वाले आकाश मेहता हास्य

कला को अपना व्यवसाय मानते हैं। उनकी इसी कला से वे लोगों के

चहिते बन चुके हैं और पिछले सात साल से लोगों को स्टेज पर

आकर हंसाते हैं और हंस कर जीना सिखाते हैं।

 

4-राहुल दुआ

  पंजाब में जन्मे राहुल दुआ एक बेहतरीन स्टैंड-अप हास्य कलाकार

  होने के साथ NDTV के राइजिंग स्टार ऑफ़ कॉमेडी 2016 के

  विजेता भी हैं। राहुल अपनी इस हास्य कला के कारण संपूर्ण देश में

  प्रख्यात हैं।

   

5-अदिति मित्तल

 देश के हास्य कलाकारों के बीच कुछ ही नाम औरतों के हैं, उन्हीं में

 से एक प्रसिद्ध महिला हास्य कलाकार हैं अदिति मित्तल। सात साल

 पहले मुंबई के एक कॉमेडी शो का हिस्सा बनीं । और आज इनके शो

 के Videos Netflix  पर भी उपलब्ध हैं। 370 हज़ार Twitter

फॉलोवर्स के साथ अदिति आज लोगों के दिलों में अपनी कला के

ज़रिये जगह बना चुकी हैं।

 

समाज में HIV/AIDS की जागरूकता फैला रही है यह १४ वर्षीय नंदिनी कुच्छल !

14 साल की लड़की नंदिनी कुच्छल जिसने समाज की एक विकट समस्या का समाधान करने का निर्णय लिया। वह समस्या जिसे हम HIV और AIDS के नाम से जानते हैं। इन दो बीमारियों का नाम सुनते ही आपके दिमाग में यही आता है कि HIV पीड़ित को स्पर्श कर लिया, या फिर उनका झूठा खा लिया तो यह बीमारी आपको भी लग जाएगी। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होता, HIV एक आनुवंशिक बीमारी है नाकि कोई छुआछूत की बीमारी। इस बात को हमारे समाज के बड़े-बड़े नहीं समझते लेकिन इस 14 वर्ष की लड़की ने समझा और इस सोच को बदलकर HIV पीड़ितों को आम जीवन प्रदान करने के लिए फाइट रेड नाम का मिशन भी शुरू कर दिया। यह संस्था HIV पीड़ितों की देख-रेख करता है, उन्हें शिक्षा दिलाता है और कोशिश करता है कि वो एक आम जीवन बिता सकें बिलकुल आपके और हमारी तरह।

इस युवा लड़की की प्रेरक कहानी सुनने के लिए देखें यह वीडियो।

 

“रेज़- आशा की एक किरन” नाम का NGO जो की जयपुर के HIV और एड्स पीड़ितों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। इस NGO की एक संस्थापक नंदिनी की दादी रश्मि कुच्छल भी हैं। 8 वर्ष की आयु से ही नंदिनी ने HIV/AIDS के बच्चों को बहुत नजदीक से देखा है और वे उनके लिए कुछ करना चाहती थीं।

अपनी दादी के नक्शेकदम पर चलते हुए, 14 वर्ष की नंदिनी ने अपना ही एक मिशन शुरू किया HIV और AIDS पीड़ितों के लिए जिसका नाम FIGHT RED है।

HIV/AIDS के प्रति समाज की रूढ़िवादी सोच और उन पीड़ितों के साथ किए गए भेदभाव के खिलाफ इस युवा ने यह अभियान शुरू किया। नंदिनी ने फाइट रेड की शुरुवात लोगों से पैसे इक्कठे करके करी, उन्होंने पीड़ितों के लिए 3 लाख से भी ज़्यादा रूपए जुटाए।  हाल ही में, प्रतिष्ठित अशोका फाउंडेशन द्वारा नंदिनी को राजस्थान की पहली युवा वेंचरर के शीर्षक से सम्मानित किया गया।

फाइट रेड ने अब तक बहुत से स्कूलों में  वर्कशॉप्स करवाई हैं और एक वर्कशॉप ट्रक ड्राइवर्स के साथ भी करी है क्योंकी इनके मध्य यह बीमारी सबसे अधिक होने का डर होता है। नंदिनी एक राष्ट्रीय स्तर की स्क्वैश खिलाड़ी हैं और बाकी बच्चों की तरह वे भी सोशल मीडिया को समय देती हैं लेकिन उनका कहना है कि –“प्रत्येक युवा को HIV/AIDS से संभंधित जागरूकता समाज में फैलानी चाहिए”

 

‘It Took Me 14 Years And 300 Rejections Every Month To Get Noticed’: Actor Sumeet Vyas

In an ideal world, says Sumeet Vyas, you’ll churn out finely wrought prose day in and day out while sipping tea in a dainty cafe which overlooks the mountains. But the brutal truth is – we don’t live in an ideal world. Nothing like it. There are days when we feel like we have run out of things to write. Sometimes we come close to giving up on our story, poem, novel or book. Sumeet acknowledges that writing is hard labour. In the same breath, he admits his unfailing love for the process.

Sumeet Vyas became a household name with his portrayal of the overeager long-distance boyfriend Mikesh Choudhary in the web series “Permanent Roommates”. Hethen acted in TVF’s web series “Tripling”, a show he co-wrote. He had to endure great disappointment before his work was finally appreciated. Watch this Josh Talk to find out how Sumeet battled 300 rejections in a month.

In his talk, Sumeet admits that rejection is an occupational hazard. “As an actor, I am always auditioning for roles. I face close to 300 rejections in a month. It took me 14 long years to convince people to take notice of my work.”

His tip for dealing with rejections is simple: persistence. “Persistence conquers all things. You’ve got to persist through failure. Push yourself. You’ve got to push through shyness and self-doubt. There is no secret to success. There’s only this.” The next time rejection knocks you down, allow the appropriate time to be upset and then let it go. It’s time to move on to bigger, better things.

Watch: Actor Anshuman Jha’s Inspiring Story On Making It Big In Bollywood

Over the years, Bollywood has come to be known more for its entertainment value and less for its quality of cinema. However, there are still some who haven’t been carried away by its glitz and glamour. Anshuman Jha is one such name. His talent and hard work shines through in every film of his, be it “Love Sex Aur Dhokha”, “Bakrapur”, “Chauranga” or “Mona Darling”.

Make Your Own Decision

Anshuman’s mother wanted him to go to Delhi University. But he knew he had to go to Mumbai, for acting was his calling. His acting career began long back with Prithvi Theatre when he did his first play at 15 years of age. One thing led to another and he got his big break on the silver screen with “Love Sex Aur Dhokha”. His latest film, “Angrezi Mein Kehte Hain” won the Best Feature Film award at HBO’S South Asian International Film Festival in New York. How did Anshuman go from attending acting workshops at Prithvi Theatre in his summer break to making it big in Bollywood? Watch the video below to find out.

Don’t Live And Dream, Live The Dream

In the video, Anshuman reveals how he landed a role in the hit movie “Love Sex Aur Dhokha”. “I am from Delhi and I used to visit Mumbai to see my sister. She put me into the summertime acting workshops at Prithvi Theatre. During one such workshop, Ramnath Tharwal cast me in his play. Then it became an yearly routine. I soon completed my diploma acting course at Barry John’s Academy. I also assisted Subhash Ghai for three years. I went for a screen test for Love Sex Aur Dhokha and they selected me. The rest is history.”

He wants to try and work in different genres with different types of actors. “My next film is called Angrezi Mein Kehte, which is a romantic comedy. This was one genre I wanted to do and I am really glad I got a chance. This movie is a comedy with a lot of soul in it.”

Why Fit In When You Were Born To Stand Out

Anshuman doesn’t shy away from speaking his mind, and the unconventional characters he has played on-screen prove that. In his debut film “Love Sex aur Dhoka”, Anshuman played a low-caste boy who gets killed for falling in love with a Brahmin girl. In “Chauranga”, he essayed the role of an uptight Brahmin man who thinks he owns the village. He’s clearly a powerhouse performer. His message in the video — persistence never goes unrewarded — is not career specific. It applies to everybody out there who dreams to make it big.